Book Title: Anekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 442
________________ किरण १२] हमारी तीर्थयात्रा संस्मरण [३८१ इन्दौरसे १४ मील चलकर मक्सीपार्श्वनाथ पाये । यहाँ मन्दिर नं. १६ राजा खेडा वालोंका-१-'संवत लारीसे सामान उतरवाने श्रादिमें काफी परेशानी उठानी १२१३ गोलापल्ली वसे मा० साबू मोदो, माधू श्री लल्लू पडी । यहां चोरीका भी डर रहता है। इस क्षेत्रको दिगम्बर भार्या जिणा तयो सुत साबृ दील्हा भार्या पल्हासरु जिननार्थ श्वेताम्बर दोनों ही मानते हैं। दोनोंकी धर्मशालाएँ हैं तथा सविनय प्रणमंति ।' दो दिगम्बर मन्दिर और भी हैं। प्राचीन मन्दिर सिर्फ एक २-संवत १६४३ वर्षे श्रीमूलसंधे सरस्वतीगच्छे ही है जिसमें भगवान पार्श्वनाथकी एक श्याम वर्ण २॥ फुट बलात्कारगणे | श्री ] चारुणंदोदेव नदन्वये श्रीगोलाराडान्वये ऊँची चित्ताकर्षक मूर्ति विगजमान है, मूलनायक मन्दिरके सा० नावे भार्या कवल, पुत्र नगउ गोल्लासुत सेठ चलाती चारों ओर ५२ देवकुलकाएँ भी बनी हुई हैं। उनमें जो प्रति- नित्यं प्रणमंति।" माएँ विराजमान है उनकी चरणचौकी पर मूलमंघ भट्टारक... मुख्नार माहब और मैंने वर्तमान भट्टारकजीका शास्त्र शाहजीवराज पापडीचाल सं० १५४८ वैसाखवदी ६ अंकित भण्डार भी दखा, इसके लिये हम उनके प्राभारी हैं। है। सबसे पहले पूजन प्रक्षाल दिगम्बर करते हैं, उसके बाद समयाभावसे हम लोगोंने कुछ थोडेस ग्रन्थ ही देख पाये थे, श्वेताम्बर करते हैं। हम लोग पूजनादि करके ग्वालियर जिनमें भ. अमरकीर्तिका मं० १२४४ कारचा हुश्रा नेमिनाथ थागरा रोड पर चले, और बावरामें मध्यभारतका टैक्स देकर चरित्रकी कुछ प्रशस्ति नोट की। यह ग्रन्थ इमी भण्डार तथा पैट्रोल लेकर एक बागमें भोजनादिक श्रावश्यक क्रियाओं में प्राप्त हुया है, अन्यत्र उसके अस्तित्वका पता नहीं से मुक्त होकर रातको ८ बजे शिवपुरी पहुँचे। चलता। पं० श्राशाधरजी के सहस्रनामकी स्वोपज्ञ टीका, शिवपुरीमें रात्रि में विश्राम कर तथा प्रातःकाल दर्शनपूज- और श्रनमागरमरिकी टीकाकी एक प्रति सं० १५७० की लिम्बी नादि कार्योको सम्पम कर नथा भोजनादि कर सोनागिरित लिए हई यहाँ मौजद है। शेष भंडारको अवकाश मिलने पर रवाना हुए, और ३॥ बजे के लगभग मोनागिरि आय । धर्म- दग्वनेका यत्न किया जावेगा। शाला में सामान लगाकर यात्राको जानका विचार किया, नाशि चलकर वालियर आये और धर्मशालाम परन्तु शारीरिक हरारत होनस जानेको जी नहीं गत्रि व्यतीतकर प्रातःकाल दर्शनकर धौलपुर होते हुए प्रागरा करता था, फिर भी मुग्टतार माहबके साथ पहाडकी थाये और वहां एक बागमें भोजनादि बना ग्वाकर श्राचार्य सानन्द यात्रा की । मोनागिर पहाड़क मन्दिर भृतियों में वीरसागरजीक दर्शनार्थ बेलनगंजक मन्दिरमें गए और समुचित सुधार हुआ है, पहाड पर राम्ना अच्छा हो गया है दर्शनकर अलीगढ, पुर्जा गाजियागत होकर राग्रिको एक सफाई भी है । रात्रिमें तबियत खराब रही। परन्तु प्रातः बज दहली सानन्द वापिस आ गये। ता. १६-५-१४ काल उठकर मुख्तार साहबक साथ नीचक मन्दिगेंक दर्शन किये । भट्टारकीय मन्दिरों दर्शन करने ममय कई मनियों ® दवा, अनकान्त वर्ष ११ किरण १२ में प्रकाशित प्राचीन से व लेनेका विचार पाया और एक दो मृतिलच 'अपनश भाषाका नेमिनाथ चरित' नामका लेख, भी नोट किये । जिस दो नमून नीचे दिये जाने हैं : --- -- - - -- - अत्यावश्यक वर्णी सन्देश संसारमें अभिलषित कार्यकी सिद्धि होना प्रायः भोजनकी व्यवस्था पृथक् हो। वे दिनमें स्वच्छा पूर्वक असंभव है। मेरे मनमें निरन्तर यह भावना बहुत कार्य करें । रात्रिमें आपसमें जो कार्य दिनमें करें कालसे रहती है । कि प्राचीन जैनसाहित्यका उस पर ऊहापोह करें। यह कार्य १० वर्ष तक निर्वाध संग्रह किया जाय । उसके लिए चार विद्वानोंको चले । इसके बाद प्रत्येक विद्वानको दस दस हजार रखा जाय । उनको निःशल्य कर दिया जाय। रुपये दिए जांय अथवा १ वर्ष २ वर्ष आदि तक र्याद कार्य कोई चिन्ता उन्हें न रहे। वर्तमानमें उन्हें २५०) करके पृथक होवे तब उतने ही हजार रुपये दिए जाय । रुपया मासिक कुटुम्ब व्ययका दिया जाय तथा उनके इसके बाद र्याद वे चाहें तो अन्य विद्वानोंको यह

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