Book Title: Anekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 446
________________ साहित्य परिचयं और समालोचन १ वर्णीवाणी (द्वितीयभाग)-पंकलयिता और उपयोगी बन सके । इस पुस्तकको पढ़कर सभी साधारणजन सम्पदक विद्यार्थी नरेन्द्र प्रकाशक, श्रीगणेशप्रसाद वर्णी जैन- अपने जीवनको समुन्नत बनाने में समर्थ हो सकते हैं। लेखक ग्रंथ-माला भदैनीघाट, काशी । पृष्ठसंख्या ४४८ । मूल्य मजि- ने ग्रन्थमें जहां तहां संस्कृत मृत्रियोंको अपने ही शब्दोंमें रुद प्रतिका ४) रुपया। रग्बनेका यत्न किया है। इस पुस्तक की प्रस्तावनाके लेखक .. प्रस्तत पुस्तकका विषय उसके नामसं ही स्पष्ट है। हीरालालजी शास्त्री कौशल हैं. पुस्तक पठनीय है इसके पूज्य वर्णीजी भारतक ही नहीं। किन्तु समस्त संमार अद्वि- लिये लेखक महानुभाव धन्यवादाह है। तीय महापुरुष हैं. उनका त्याग, तपश्चर्या, तथा प्रात्ममाधना, ३चन्दवाई अभिनन्दन प्रन्थ-सम्पादिका श्रीसुशीविवेकवनी प्रज्ञा, लोकोद्धारकी निर्मल भावना और उनकी ला देवी सुलतानमिह जैन, श्री. जयमालादेवी जिनेन्द्रकल्याणकारक वाणी जगतके जीवांका हित करने में समर्थ है। किशोर जैन दिल्ली। प्रकाशिका अ. भा. दि.जैन महिला की पावन और मधुरवाणीको, जो समय समय पर उनके परिषद्, पृष्ठ संख्या लगभग ७०० । मूल्य १०) रुपया। द्वारी पत्रादिकॉमें लिखी गई,संकलन किया गया है। वह कि ब्रह्मचारिणी चन्दाबाई जी इस शताब्दीकी सभ्रान्त कुलकी तनी मूल्यवान है इसे बतलानेकी आवश्यकता नहीं है, जिन्हों ग्व्याति प्राप्त एक विदुषी जन महिला हैं। जिन्होंने महिलामके ने उनक आध्यात्मिक पत्रोंका अध्ययन किया है उनक भाषण जागरणम्वरूप समाज-संवामें प्रमुख हाथ बटायों है। उन्होंने और प्रवचन सुन है वे उसक महत्वसे परिचित ही हैं। इस समाजमें शिक्षा-पा हिन्य, पत्रकारिता तथा दूसरे लोकसेवाके पुस्तक में भाई नरेन्द्रजीने उनके प्रवचन, अभिलेख और दन उपयोगी कार्योमें अपना माधनामय जीवनव्यतीत किया और न्दिनीक मारपूर्ण वाक्योंका सिलसिलवार यथास्थान संकलन कर रही है। आपका व्यक्रिगत जीवन, बड़ा ही निस्पृह, कर दिया है। इस लिए वे धन्यवादके पात्र हैं । पुस्तकको मीधा सादा रहन-सहन, त्याग और साधना स्पृहाकी वस्तु हैं। छपाई सफाई अच्छी है। प्रान्महितोंको उसे मंगाकर चंपाराकी जनजागृतिकी तो उत्तम प्रतीक है ही। साथ ही अवश्य पढ़ना चाहिये। चरित्र निष्ठा, सरल व्यवहार और गुणानुराग उनके जीवनके २ जीवन्धर-जेवक पं. अजितकुमार जी शास्त्री। महचर हैं। एसी महिला रत्नको उनकी संवानोंके उपलक्ष्यप्रकाशक मन्त्री श्री जैन सिद्धान्तग्रन्थमाला दि. जैन धर्म में अभिनन्दन ग्रन्थभेंट करनेका एक प्रस्ताव सन् ४८ ई. में शाला पहाडी धीरज, दहली । पृष्ठ संख्या ३१६ । मूल्य म- दहली में पास हुआ था । जो प्रागत अनेक विघ्नबाधामोको जिल्द प्रतिका दो रुपया। पार करता हुआ पूर्ण होकर अपने वर्तमान रूपमें महावीर इस पुस्तकमें भगवान महावीरके समकालीन राजा जयन्तीक इस शुभअवसर पर दहलीमें उपराष्ट्र पतिक द्वारा पत्यंधरके पुत्र जीवंधर कुमारका जीवन परिचय दिया गया समर्पित किया गया। है। जीवन्धरन अपने पिता सत्यन्धरसे काष्ठांगारके द्वारा छीने प्रस्तुत अन्य ६ विभागों में विभाजित है। जीवन सस्मगए गज्यको पुनः प्राप्त किया और अन्तमें भगवान महावीरके रण और अभिनन्दन २ सन्तोंक शुभाशीर्वाद और श्रद्धासमवपरणमें दीक्षा लंकर घोर तपश्चरण किया, फलस्वरूप अलियौं ३ दर्शन-धर्म ४ इतिहास और साहित्य, ५ नारी ध्यानाग्निके द्वारा कर्ममलको जलाकर स्वात्मोपलब्धिको- अतीत प्रगति और परम्परा, और ६ विहार । इनमें से प्रथम पूर्ण श्रात्मस्वातन्त्र्यको प्राप्त किया। और उनकी आठों विभागमें ३० व्यक्रियोने प्र.चन्दावाईजीक जीवन पर अनेक स्त्रियोंने आर्यिकाक व्रतोंका सझनुष्ठान कर उत्तमार्थकी दृष्टि विन्दुओंसे प्रकाश डाला है। दूसरे में ५५ सन्तों, महिप्राप्ति की। लाओं, सज्जनोंने अपने पाशीर्वाद और श्रद्धांजलियों भेंट की लेखकने इस पुस्तकमें उन्हींके पावनजीवनको संस्कृत हैं। अवशिष्ट चार विभागोंमें विविध विद्वान लेखकों द्वारा प्रन्योंपर से लेकर भाजकी हिन्दी भाषामें रखनेका यत्न किया विविध विषयों पर लिखे गये ७८ लेख दिये हप है। चित्रों. है। भाषा मुहावरेदार और सुगम है। फिर भी उसमें साहि- की पृष्ठ संख्या १६ है जिनमें बाईजी और उनके परिवारसे त्यिक निखार होनेकी आवश्यकता है जिससे प्रन्य और भी संबन्धित चित्रोंके अतिरिक्र अनेक मूर्तियोंके कलापूर्ण चित्र भी

Loading...

Page Navigation
1 ... 444 445 446 447 448 449 450 451 452