Book Title: Anekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 417
________________ श्री महावीर जयन्ती अभिनन्दन समारोह इस वर्ष देहवीमें भगवान महावीरकी जन्म जयन्ती ता. अप्रेलको भगवान महावीरकी जयंतीके शुभ का उत्सव बहुत ही उत्साहपूर्वक मनाया गया। सब्जीमंग अवसर पर भारतके उपराष्ट्रपति डा. राधा कृष्णननके बोदरोड, पहादीधीरज, म्यू देहली और परेडके मैदाममें हायसे समाज सेविका ब्रह्मचारिणी श्रीमती पंडिता चन्दाबनाये हुए विशाल पंडाल में जैन मित्रमंडलकी भोरसे मनाया बाईजी को उनकी सेवायोंके उपलक्ष्यमें देहली महिला गया। ताको पहादी धीरजसे एक विशाल जलस समाजकी ओरसे अभिनन्दन प्रस्थ भेंटमें दिया गया। चाँदनी चौक होता हुचा परेडके मैदान में पहुंचा और वहाँ श्रीमती बजवालादेवी पाराने बाइजोका जाव श्रीमती बजवालादेवी पाराने बाईजीका जीवन परिचय मारत सरकारसे निवेदन किया गया कि भगवानकी जन्म- कराया। ता. १६ को भारत वर्षीय दि. जैन महासभाकी अयंतीकी छुट्टी अवश्य हमी चाहिए। इस वर्ष देहलीको जन- ओरसे सर सेठ भागचन्दजी मानी अजमेरके हाथ से एक ताने अपना सब कारोबार बंद रखा। भारत सरकारका चाहिये अभिनन्दन पत्र भेंट किया गया। उस समय कई विद्वानाने कि जब उसने दूसरे धर्मवालोंकी जयन्तियोंकी छही म्बीकत आपकी कार्यक्षमता और जीवन घटनाओं पर प्रकाश डाला। की। तबहिंसाके अवतार महावीरकी जन्म जयन्तीकी चन्दाबाईजी जैन समाजको विभूति हैं, हमारी हार्दिक ही देना उसका स्वयं कर्तव्य हो जाता है। पाशा कामना है कि वे शतवर्ष जीवी हो ताकि समाज और देशकी भारत सरकार इस पर जरूर विचार करेगो, भागामी वर्ष भार भी अधिक सेवा कर सकें। महावीर जयन्तीकी छुट्टी देकर अनुगृहीत करेगी। -परमानन्द जैन शास्त्री जयन्तीमें अबकी बार अनेक विद्वानोंके महत्वपूर्ण भाषण हुए ! उन भाषणोंमें भारतके उपराष्ट्रपति डा. सर राधाकृष्णनका भाषण बड़ा ही गौरवपूर्ण हमा। . पाठकोंको यह जान कर हर्ष होगा कि वीर-सेवापापने अहिंसाकी व्याख्या करते हुए बताया कि अहिसा मन्दिरके सतत प्रयत्नसे मुडविद्रीके भण्डार में विराजजैनोंका ही परमधर्म नहीं है कि वह भारतीय धर्म है। मान श्रीधवला (तीनों प्रतियाँ), श्री जयधवला तथा पाहिंसाकी प्रतिष्ठासे बैर-विरोधका प्रभाव हो जाता है और महाधवला (महाबन्ध) की ताड़पत्रीय प्रतियोंके भामा प्रशान्त अवस्थाको पा लेता है। इसमें सन्देह नहीं फोटो ले लिये गए हैं। वहांक विस्तृत समाचार तथा महावीरन अपनी अहिंसाको अमिट छाप दूसरे धर्मों पर मूल प्रतियों के कुछ पृष्टोंके फोटो अगली किरणमें दिए मूल जमाई और उन्होंने उसे वैदिक क्रिया काण्डके विरुद्ध जावेंगे। इस महान कार्यमें उग्रतपस्वी श्री १०८ आचार्य स्थान दिया और कहा : नमिसागरजी तथा श्री १०५ पूज्य क्षुल्लक पं० गणेशयूपं बध्वा पशून हत्या कृत्या रुधिरकर्दमम । प्रसाद जी वणींके शुभाशीर्वाद प्राप्त हैं। यदेव गम्यते स्वर्ग नरके कन गम्यते ।। -राजकृष्ण जैन यज्ञस्तंभमे धांवकर, पशुओंको मारकर और रुधिरकी कीचड़ बहाकर यदि प्राण। स्वर्गमें जाता है तो फिर नरक कौनजायगा। अतः हिसा पाप, नरकका द्वार है। हिसा खतौली जि. मुजफ्फर नगर निवासी ला. बलवन्तही परम धर्म और उससे ही सुख-शान्ति मिल सकता है सिंह माम चन्द्रजीने अपने सुपुत्र चि. बा. हेमचन्द्र मापने अहिंसाके साथ जैनियोके भनेकांतवाद सिदा- शुभ विवाहोपलच्यमें वीरसेवामन्दिरको ..) रुपया मतका भी युक्तिपूर्ण विवेचन किया । डा. युद्धवीरसिंहका प्रदान किये हैं। इसके लिये दातार महोदय धन्यवादके भाषण भी अच्छा और प्रभावक था । इसतरह महावीर पात्रह। जयन्तीका यह उत्सब भारतके कोने-कोने में सोरसाह मनाया राजकृष्ण जैनगया है। व्यवस्थापक बीरसेवा मन्दिर

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