Book Title: Anekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 370
________________ किरण १०] गररावी क्यों। बगतीमान भी बराबनता है। इसी प्रकार बायसे और भक्ष्योल्पादक श्रमके समर्थकोंपर यह कहावत परी कागज तैयार करना। इसमें भी समय ज्यादा अगता है तरहबाग होती है। और खराब माल बार होता है। मनुष्यकी शक्ति अधिक बेकारी दूर करनेके दो उपाय है, एक तो अधिक लगती है। जिस कामके लिये मशीमें नहीं हैं था जहां भादमियोंसे अधिक उत्पादन करना, दूसरा पुराने या चला मशीने नहीं मिल सकतो वहाँकी बात दूसरी है पर उत्पादनमेंही अधिक भादमियोंको खपा देना । पहिला बेकारी हटनके नाम पर मशीनोंका बहिष्कार करना देशको तरीका समाजके वैभवका है, दूसरा समाजकी गरीबी या कंगाल बनाना है। सबको जीविका देनेकी वार्षिक योजना कंगालीका। न बनाकर इस्तोचोगके नामपर व्यक्तिवाद पनपना देश है.अनुत्पादकार्जन-बोग ऐसा काम करते हैं और दुनियाके साथ दुस्मनी रना है, उन्हें कंगाल जिससे देशर्म धनका या सुविधाका या गुबका उत्पादनतो बनाना है। नहीं बढ़ता फिर मी व्यक्तिगत रूपमें लोग कुछ कमा खेते जहाँ अमुक तरहका माल बेचने के लिये पांच दुकानोंको है। यह अनुत्पादकाजल है। इससे कुछ लोगोंकी शक्ति •अरूलत है वहाँ पच्चीस दुकान बन जाना भी अल्पोपादक- व्यर्थ जाती है। जो शक्ति कुछ उत्पादन कर सकती बी अमरे। क्योंकि ग्राहकों की सुविधा तो उतनी पैदा की वह अनुत्पादक कार्यों में खर्चा हो जानेसे देशको गरीबी ही जायगी पर श्रमखर्च होगा पाँचकी जगह पच्चीस का । बहाती इस प्रकार हर एकका श्रम प्रपोत्पादक होगा। व्यक्ति- सहा भादि इसी श्रेणी का है। इससे खींचवानकर बादमें यह हानि स्वाभाविक है, क्योंकि किस किस काममें कृत्रिमरूपम बाजार बंधा-नीचा किया जाता है, और इसी कहाँ कितने भादमियोंको लगानेकी जरूरत है इसकी कोई उतार पड़ावमें सटोरिये लोग व्यर्थ ही काफी सम्पत्ति सामाजिक व्यवस्था तो हाती नहीं है, जिसे जो करना पट लेते है । यह सम्पति ग्राहकों और उत्पादकों होता है अपनी इच्छासे करने लगता है। इसलिये एक पाक्टिसे बिनती है और कुछ मुफ्तखोरोको अमीर बनाती दुकानकी जगह चार दुकानदार एक प्रेसकी जगह चार है। देशका इससे कोई लाभ नहीं, अमका तथा पनका प्रसपन जाते है, महक एकको जगह चार जगह बट नुकसान ही है। जाते है इसलिये दुकानको अधिक मुनाफा लेना पड़ता है, बीमा व्यवसाय भी इसी कोटिका है। इससे देशमें फिर भी बहुत बाधक नहीं लिया जा सकता है इसलिये कुछ उत्पादन नहीं बढ़ता, बल्कि कमी कभी काफी उनको भी गरीबी में रहना पड़ता है। इस प्रकार प्राहक नुकसान होता है। जैसे सम्पत्तिका अधिक पीमा भी नुकसान उठाते हैं और दुकानदार भी नुकसान उठाते कराके, सम्पत्ति में इस ढंगले भाग लगा देना जो है पर व्यक्तिवाद में भाज इसका इलाज नहीं है। स्वामाविक लगी हुई कहलाये, भाग दुकाने की तत्परतासे देशर्म महोत्पादन के लिये जितने भादमियोंकी जरूरत कोशिश न करना. इस प्रकार सम्पत्ति नष्ट करके अधिक है उससे अधिक प्रादमियोंका उसी काममें खपाना भी पैसे वसूल कर लेना। बीमा कम्पनियाँ ऐसे बदमाशोंका अस्पोत्पादकसम है। अमेरिकामें एक समय अस्मी फ्रीसदी पैसा चुका तो देती है पर यह माता कहां से है। दूसरे भादमो खेतीमें लगे थे फल यह था कि अन्य उद्योग पनप बीमावाबोंके शोषण से ही यह पैसा दिया जाता है, नहीं पाते थे और देश गरीब था, अब पच्चीस कोसदी यदि बीमा कम्पनीका दिवाला निकल जाये वो शेयर भादमी की खेती में लगे है और देश अमीर है। जो लोग होल्डरोंके सेसे यह चुकाना कहलाया। मतलब यह कि किसी भी एक काममें जरूरतसे ज्यादा भादमियों को खपाने बोमा कम्पनियाँ बहुतसे ईमानदारोंको लुमाकर उनसे पैसा की योजना बनाते हैपपोत्पादक श्रमसे देशको कंगाल बीमती है और कप भने बुरोको बोट देती हैं और पर बनाते है। सम्भवतः वे शुभ कामनासे भी ऐसा करते भी बीच में दवाबी का जाती हैं। इससे इतने बोगोंकी होंगे पर उनकी शुभ कामनाएँ देशको कंगाल बनानेकी शकिम्बखो जाती ही है, उत्पादन भी नहीं होता तरफहीप्ररित करता है। जीकी यह कहावत बहुत है, साथ ही समय समय पर बालोंकी सम्पत्ति जानक ठीक है कि 'नरकका रास्ता शुभकामनामोंसे पट पदारपर्वाद की जाती है, यहाँ बाकि कमी कमी जीवन

Loading...

Page Navigation
1 ... 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452