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अनेकान्त
[किरण ८
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विरोधी विचार रखनेवालोंको भी वह अपना समर्थक, और इत्यादि की कथायें मुखता पौराणिक प्रतीत होती है पर अनुकूल बना लेता है। विचार विनिमय द्वारा भी एक ये कथायें जैन साहित्यमें भी बहुत प्रसिद्धि प्राप्त हैं। तुनइमरीके विचारों का मादान प्रदान होता ही रहता है। एक नात्मक अध्ययनको कमीके कारण ही हम एक दूसरेके व्यक्तिके रहन-सहन, वेश भूषा, धादिका प्रभाव उसके साहित्यकी विशेषताओंसे सर्वथा अपरिचित है। इसी सम्पर्क में पाने वालों पर न्यूनाधिक रूपमें अवश्य ही प्रकार वामनावतार और विष्णुकुमारकी है। कुछ बातों में परता है। कुछ बातें जो उसे प्राकर्षित करती हैं,वह अपना वैषम्य होने पर भी मूल घटनाओं में इतनी समानता है कि लेता है। संगतिका असर इसीलिये इतना अधिक माना पढ़ कर भारचर्य होता है। किसने किसका अनुकरण गया है। भारत में जब पाश्चात्य देशोंका सम्पर्क बढ़ा तो किया, यह तो निश्चित रूपस नहीं कहा जा सकता पर अधिकांश भारतीय भी पाश्चात्योंकी वेश भूषा, भाषा सम्भव है वामनावतार प्रसिद्ध १० अवतारों में सम्मिलित रहन, सहन, चालढाल इत्यादि अंगीकार करने लगे। और होनेसे यह कथा पौराणिक ही रही हो। भिन्न भिक समय अभीतक उन्हें छोड़ नहीं पाए भारतीय संस्कृतिको छोर. में भिन्न भिन्न व्यक्तियोंके सम्बन्धमें एकसी घटनायें कर वे उस विदेशी संस्कृतिकी ओर झुक रहे हैं तथा उसे
घटित होना असम्भव नहीं पर इस कथाको पढ़ कर हृदय अच्छा समझकर अपना रहे हैं। यह सब अनुकरण प्रयता
इस बातको माननेके लिये तैयार नहीं होता कि दोनोंकी
घटनायें अलग अलग हैं। कई वर्षोंसे इन दोनों कथानकों का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
की समानता मुझे प्राकर्षित कर रही थी। कुछ वर्ष हुये भारतमें आर्य, अनार्य संस्कृतिका सामाजिक, धार्मिक विष्णुकुमारके कथासम्बन्धी अनेक जैनग्रन्थोंको शोध क्षेत्रों में बहुत कुछ पारस्परिक आदान प्रदान हुआ। कई करते समय उनमें सबसे प्राचीन ग्रंथ वीं शताब्दीकी अनार्य देवताओं और पूजा विधिको पार्योंने अपना लिया 'वसुदेव हिंडी' ज्ञात हुआ अतः आगे उसी में वर्णित कथा तो अनार्योंकी कई बातोंको प्राोंने अपनाया। शदियोंके दी जा रही है । वामनावतार तो सब पुराणों में प्रसिद्ध हे सम्पर्कके बाद प्राज यह पता लगाना भी कठिन हो गया ही पर वेद जैसे प्राचीनतम ग्रन्थ में भी उसका मूल प्रसंग है, कि किस विषय में किसका कितना प्रभाव है। लोक वणित है अतः उमको दिखाते हुये भागवत् पुराणमें वर्णित साहित्य और जनविश्वासमें तो बहुनसी बातें सारे विश्व प्रसंगको तुलनाके लिए यहाँ दिया जा रहा है। भरमें समानरूप में मिलती हैं। जोक कथानों में प्राय: एक
श्री सम्पूर्णानन्दने अपने पार्योंका आदि देश' नामक ही बात कुछ साधारण अन्तरके साथ या उसी रूप में भी
ग्रन्थमें वेदमें निहित वामनावतारके उल्लेखांको इस प्रकार
दिया है। विभिन्न राष्ट्रोके साहित्यमे मिलेगी। दार्शनिक क्षेत्रमें । कई सिमान्त और प्राचार विचारोंकी ममानताएँ पाई
"विष्णुके तीन पदोंकी कथा पुराणमें प्रसिद्ध है। जाती है साहित्य सम्बन्धमें भी यह सत्य है। असुरराज बलि ने इन्द्रमे स्वर्गका राज्य छोन लिया था । कहीं भाव साम्य, कहीं अर्थ साम्य तो कहीं शैली बजीकी दानवीरता प्रसिद्ध थी। विष्णु उनके यहां बौने
और नामकरणकी समानता देख बहुत बार तो विरमय सा ब्राह्मणके रूप में प्राये ओर उनसे तीन पद भूमि मांगी। होता है। जैनागमोकी कई गाथायें बौद्धारिक कथामन्यांमें श्री अगरचन्द जी नाहटाने संघदासगणोका जो पाई जाती है। इसी प्रकार कई पौराणिक आख्यानोको समय ५ वीं शताब्दी लिखा है वह ठीक मालूम नहीं वैदिकग्रन्थों और जैन साहित्यमें (एक ही कथा) समान होता, क्योंकि मनि श्री जिनविजयजीने भारतीयविद्याक रूपसे पाते हैं। इनमेंसे कई दन्तकथायें धादि तो लोकप्रिय वर्ष ३ अङ्क में संघदासगणीका समय विशेषावश्यक होनेसे तीनों जैन, बौद्ध और वैदिकोंने, अपने अनुकूल बना भाज्यके कर्ता जिनभद्रगणी हमाश्रमणके समीपवर्ती होना कर ग्रहण कर लिया प्रतीत होती हैं। कई एक दूसरेकी लिखा है। चूंकि जिनभद्रगणी समाश्रमणका समय शक कथाप्रोसे प्रभावित होकर अपने अपने धार्मिक कथा सं०५३. वि० सं० ६६६ निश्चित है। अतः यही समय साहित्यमें मिला दी गई है । कई पौराणिक कथामाको मुनि जिनविजयजीके अनुसार संघदासगणीका होना दोनों धर्म (जैन और वैदिक धर्म ) ग्रन्थों में समान रूपसे चाहिये । वह वीं शताब्दी किसी तरह भी नहीं हो साता। पादर प्राप्त है। मन दमयन्ती, सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र
-प्रकाशक