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अनेकान्त
[वर्ष ११
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कैलगमा पुनि प्राम दुगौडहु के सब ही वस वासन हारे पिका मावि दिये गये है। जिनमें से पाओ परवतध और __ ग्यारहवीं रमा तीन मूढता भारती', जिसमें देव. कपाटबंध नमूने के तौर पर दिये जाते हैं:महता, गुरुमूढता और शास्त्रमूलवाके भाव, द्रव्य, परोष, प्रत्या, बोक, क्षेत्र और काखके भेदसे प्रत्येक सात सात मेद मिला कर मूहलाके २१ भेदोका स्वरूप दिया हुआ है। यथा:
महावीर गंभीर गुण, वंदी विविध प्रकार । देव-शास्त्र-गुरु मूढ़कौ, करौं प्रगट निरधार ।। पर सा त मा रा भाव द्रव्य जगमांहि प्रगट, पुनि परोख परितक्ष। लोक क्षेत्र अरु काल शठ,लख्यौ सप्त विधि दक्ष ।
बारहवीं रचना 'शीलांग चतुर्दशी' है, जिसके प्रारम्ममें कविवर पानसरायकी देवशास्त्रगुरु भाषा पूजाके पोंके अमर शीख अठारह हजार भेदोंका कथन दिया हुआ है उसके अन्तिम दोहे निम्न प्रकार है:
दो द भी कहे भाष शीलाँगके, सहस अठारह भेद । जे पालै तिनके हृदय, शिव स्वर्गादि उमेद ।।१।। शील सहित सरवंग सुख,शीन रहित दुख भौन । देवीदास सुशीलकी, क्यों न करौ चिन्तौन ॥१४॥
जी क मो ल | वी राप। तेही रचना 'सप्तव्यसन कवित्त' है जिसमें जमा उक रचनाके अंतर्गत 'जोग पच्चीसी' है जिसमें शुभ. मादि सप्तम्यसनोंका स्वरूप निर्देश किया गया है। अशुभ और शुद्ध उपयोगका वर्णन दिया हुआ है जो चौदहवीं रचना 'विवेक बत्तीसी है जिसमें चित्रबद्ध ॥ ौपदेशिक होते हुए भी सद्पदेशोंमें रोचक है। उसमेंमे दोहों द्वारा बारम विवेकको प्राप्त करनेका उपदेश किया कुछ बन्द पाठकोंकी जानकारी के लिये नीचे दिये जाते हैंगया है। जैसा कि उसके अन्तिम दोहोंसे प्रकट है:
"मन वष तन दर्वसौं, कियो बहुत व्यापार । जह निहचल परिनति जगी, भगी सकल विपरीति। पराधीनता करि परचौ, टोटो विविध प्रकार ॥ पगी आपसौं श्राप जब, निरभय निर्मल रीति ॥३शा अरे हंसराज! तोहि ऐसी कहा सूमि परी, स्व-पर-हेत उचम सु-यहु निज हग देखि विलोय। पूँजी लै पराई वंजु कीनौ महा खोटो है। भव्य पुरुष अवधारियौ, यामै कष्ट न कोय ॥३२॥ खोटो वंज कियौ तोहि कैसे के प्रसिद्ध होहि चित्र बंध सब दोहरा, वर विवेककी बात । भाषा परगट समझियो, सुबुद्धिवंत जे तात ॥३३॥ वेहुरेसौ बंध्यो पराधीन हो जगत्र माहि,
देह-कोठरीमें तू भनादिकौ अगोटो है। पन्द्रही रचना 'स्व-बोगराबरी है जिसमें कमोदयवश मिथ्यात्वक सम्बन्धसे होने वाली जीवकी भूखको प्रगट
" मेरी कही मानु खोजु आपनौ प्रतापु आपु, किया गया है। सोखहवीं रचना ' 'माखोचमांतरावजी'
तेरी एक समयकी कमाई कौन टोटो है॥१॥ है, जिसमें तीर्थंकरोंके पूर्वमवाम्वरोका उपदेश किया
दया दान पूजा पुंजी, विषय कषाय निदान ।
ये दोऊ शिवपंयमें, वरनों एक समान ॥
दया दान पूजा शील पूजीसौं अनान पनै, भावी रचना स्वयं कवित्तकारी रचना
जे तो इस तू अनंतकालमें कमायगौ। 'भोगपच्चीसी' है जिसमें चित्रावर अनेक पद और पन्त- तेरी विवेककी कमाई या न रहे हाथ,
मापसौं आप जब, EिT देखि विलोय। खोटो बंजु कियौ तो कवाय व्याज चोटी है।