Book Title: Anekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 355
________________ ३१६] अनेकान्त [किरण D प्रबन्ध पाँव पसारवी है । मायाकेश होजानेसे राजाका विमुक तर विणि भांडी बसिवा सही, कावा नगरी नव बारही। माधिपतित्व नाशको प्रास होजाता है, तब वह अपने निवाजे हुँतम नगपति निरदोस,विणि ते तई मानिउं संतोस ।२७। सके जिये 'काया-नगरी' को बचाकर सन्तोष मान बेवा रास है। अन्धमें शान-कलाको तिलांजलि देकर अपना समस्त कावाए नगरी चंग, मचारि अति वदी। व्यापार 'मन अर्पण करदेता है। 'मन' मन्त्री प्रारम्मसे जे होतो एजगपविराडतेविण नगरियो अदीए। ही मलिन होने के कारण राजकाजको धूलिमें मिला देखा है। और भी बहुतसे उदाहरण दिए जा सकते हैं, लेख वह अपनी चंचलतासे सर्वत्र भ्रमण करता रहता है और विस्तारके भवसे इवने ही से सम्सोष किया जाता है। 'माया' के साथ प्रतिजोद कर राजाको पाप-पाशमें बांधकर स्वयं राज्यका स्वामी बन बैठता है। इससे देना, बरबाद, जैसा कि पूर्व कहा मा पुकार-दोनों प्रन्यों में कथा करना बन्धन में डालना, बन्धनमुक्त करना, ये समस्त अपनी वस्तु एक ही है। कहीं कुछ रासमें अधिक जोर दिया है। इमानुसार एवं जिस प्रकार उसे हचिकरहो इस प्रकार और कुछ बम विस्तारसे कर दिया है, इसीसे इसका करता है। राजा पराभव भूत होकर बना पेट भरता है। परिमाण कुछड़ गया है। फिरभी कविताकी रष्टिये प्रबन्ध ही उत्तम प्रतीत होता है। प्रबंधकी कथाका सारांश 'मन' 'प्रवृत्ति' और निवृत्ति' दो स्त्रियां है। पंडित बाबचन्द भगवानदासने गुजराती में अपने संपादित 'प्रवृत्ति के द्वारा 'मोह' और 'निवृत्ति के द्वारा 'विवेक' प्रथमें दिया है उसका हिन्दी रूपान्तर भागे दिया जारहा इन दो पुत्रोंकी उत्पत्ति होती है। प्रवृत्ति' 'मन' को वश में है। यदि किसी दिगम्बर विद्वानको ऐसी ही कथा बाबा कर अपनी सौत निवृत्ति क्या उसके पुत्र 'विवेक'को विदेशकोई बम्ब अन्य दिगम्बर साहित्य में मिल जावे तो मुझे गमन करवा देती है। सूचित करनेका नम्र अनुरोष है। रासकी प्रति अभी मेरे मन, प्रवृत्ति और माया-वह त्रिपुरी राजाको बन्धनमे पास है, पदि कोई विद्वान् इसे सम्पादन करना चाहे या बालकर अपनी समस्त मान्तरिकछानोंकी पूर्वि करते हैं। कोई स्था प्रकाशित करना चाहे तो उसकी प्रतिलिपिका इस समय राजा अपनी 'चेतना' रानीकी शिक्षाका स्मरण प्रबन्ध भी किया जा सकता है। अभी तक ब्रह्मजिनदास कर रोने लगता है और अपनी कायाजनक स्थितिका स्पष्ट का 'श्रीपाल रास' ही सूरतसे प्रकाशित मेरे अवखोकममें वर्णन करके 'चेतना' को उसकी सम्हास करनेके लिये माया उपयुक१६ प्रन्योंके अतिरिक कुष फुटकर प्रार्थना करता है । “तुमको माया मिलगई है, मेरा क्या स्ववन मादि भी मिबते है। काम है: मन मन्त्रीका राज्य है, जिस प्रकार वह तुम्हें विवश करे सहन करो।" इस प्रकार उत्तर देती हुई चेतना प्रारंभ कविने परमेश्वरको और योगरष्टिनारा सरस्वती अवरच राती है। का स्मरण करके सरस्वती माधारसे सुन्दर काम्य रच्ने. निवृत्ति के ले जाने वाद 'प्रवृत्ति' 'मम'को की सूचना दी फिर पाएमगुदिकी पावरपकवा, शान्त समझाकर अपने पुत्रको राज्य दिखा देती है।मोदकुमारके रसकी श्रेषता और पात्मज्ञानका प्रभाव दिखाकर मारम एम. राजा होते ही बगवमें मोहकी भाशा-प्रवरदेवा विचारको सुनने के लिये श्रोतामोको सावधान किया है। ' मोहराजा बिज्जादयस्थानमें 'अविधा' नामक त्रिभुवनमें अत्यन्त तेजवंत परमहन्स बाके यहां नगरीकी स्थापना करके राज्य करने लगता है। मोहके 'चेतना' नाम की रानी है। ये दोनों इण्यानुसार कुतूहल. दुर्मति नामकी एक रानी है, उसके 'काम' नामका एकदा केशि किया करते हैं। यकदिन 'मावा' नामक रमणीके पुत्र और राग और प-येोबोटे पुत्र हैं। निद्रा, रूपको देखकर राजा बिहब होगाताराबहगावकर रानी मधति और मारि ये तीन पुत्रिया है। इसी प्रकार मिष्याअपने पधिको मावाकी संगति नहीं करनेके लिए पात दर्शन मन्त्री, सम्पसन, समभंग, निगु यासंगति सभा, समकाती है, परन्तु उसका समकामा विफलस। नास्तिकाममित्र, अमर्षद, मावस्व सेनापति, राजाधिसमें 'मावा'पासोमानेसे 'वाहीपर वम पुरोहित और कबिरसोइया इत्यादि मोहराया विपकर बीपीका संचार खबासेमाचा विशेष परिवार है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484