Book Title: Anekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 433
________________ [३८४ अनेकान्त किरण ११] 63D में उनको एक साप्ताहिक सभा भी कायम हो गई, जिसमें (क) साहित्यिक अनुसन्धान-द्वारा सैकड़ों ऐसे प्रन्यों स्त्रियां और कन्याएँ भाषण देती तथा भाषण देनेका का नया पता चला है, जिनका पहलेसे कोई परिचय नहीं अभ्यास करती थीं। चार साल तक यह विद्यालय बदस्तूर था और जिनसे इतिहासके विषयों पर भी कितनाही प्रकाश जारी रहा । बादको आर्थिक सहयोग न मिलनेके कारण पड़ा है। । उनमें बहुतसे प्रन्थ उपलब्ध है और कुछ ऐसे इसे एक साल तक बन्द रखना पड़ा और अब यह स्थानीय भी हैं जो अभी तक उपलब्ध नहीं हुए, उनके लिये खोज जनताके प्राधीन हुआ उसके तथा सरकारके सहयोग पर जारी है। स्वोज द्वारा उपलब्ध हुए ग्रन्थोंमेंसे कुछके नाम चल रहा है। इस प्रकार हैं, जिनमेंसे अधिकांशका निश्चित समय भी (७) वीरसेवामंदिरके सेवाकार्यको साधारणसे साधारण साथमें उपलब्ध हो गया है:जनता तक पहुँचानेके लिये जुलाई सन् १९३७ में एक सस्कृत मन्थ-१क्षपणासार गय, २ पदार्थदीपिकाधर्मार्थ औषधालय खोला गया और उसके लिये वयोवृद्ध ३ अध्यात्मतरंगिणी टीका, ४ मादिपुराण टीका (ललितहकीम उल्फतराय जी जैन रुड़कीकी मॉनरेरी सेवाएं प्राप्त कीर्ति), पंचमनस्कारमन्त्र (पा. सिंहनन्दी),६-७ पद्मकी गई। हकीमजीके अनुभवों तथा प्रेममय व्यवहारके पुराण तथा हरवंशपुराण (बलितकीर्ति-शिष्य धर्मकीति). कारण थोड़े ही दिनोंमें औषधालयकी अच्छी ख्याति हो ___ माला मूलाचार प्रदीप (सकलकीति), धर्मरत्नाकर, १० गई और स्थानीय तथा देहाती जनताने उससे खूब लाभ ... भ - ममवमरणपाठ (पांडे रूपचन्द्र), ११--१३ यशोधरउठाया। दुर्भाग्यसे हकीमजीका देहावसान श्री सम्मेद चरित्र, सप्तम्यमनकथासमुच्चय तथा प्रद्युम्नचरित्र (सोमशिखरजीकी दूसरी यात्रा करते हुए हो गया। उनके कीर्ति), १४ प्राकृत पंचसंग्रहटीका (सुमतिकीर्ति), १५ स्थान पर एक आयुर्वेदाचार्यकी योजनाकी गई; परन्तु वह तवाटिप्पण हमकीति शिष्य प्रभाचन्द्र), १६-१७-१८ बात प्राप्त न हुई । इधर कुछ आर्थिक संकट भी उपस्थित शान्तिनाथपुराण, पाण्डवपुराण तथा अनन्तव्रतपूजा (विद्याहोता हुमा नजर आया, इसलिये औषधालयको दो वर्षके भूषण शिष्य श्रीभूषण)१९-२५ भविष्यदत्तकथा, हनुमानकरीब चलाकर बन्द ही कर देना पड़ा। कथा, नेमीश्वरराम, प्रद्य म्नचरित्र,सुदर्शनरास तथा श्रीपाल(२) वीरसेवामन्दिरका प्रधान लक्ष्य शुरूसे ही अनु- रास (ब्रह्म रायमल्ल).२६ त्रिपंचाशतक्रियाव्रतोद्यापन (देवेन्द्रसन्धान, निर्माण, अनुवाद, सम्पादन और प्रकाशन जैसे कीर्ति) इत्यादि जि.का निर्माण-काल साथमे उपलब्ध ठोस कार्योंकी भोर रहा है। इस दिशामें अथवा इन पांचों है और जिनका निर्माणकाल मायमें उपलब्ध नहीं है विभागांमें जो काम अब तक हो पाया है उसका दिग्दर्शन उन संस्कृत ग्रन्थोके कुछ नाम इस प्रकार हैं:-२७ धर्मभागे विभाग-क्रमसे कराया जाता है। परीक्षा (मुनि रामचन्द्र), २८ देवताकल्प (गुणनिशिष्य अनुसन्धान-कार्य अरिष्टनेमि), २६ षड्दर्शन-प्रमाण-प्रमेय-संग्रह (शुभचन्द्र), (६) वीरसेवामन्दिरका अनुसन्धान कार्य प्रायः (क) ३० यशोधरमहाकाव्यपंजिका (श्रीदेव), ३१ द्रोपदिप्रबन्ध (जिनसेन), ३२ तत्वसारटीका (कमलकीर्ति), ३३ भंगारसाहित्यिक, (ख) ऐतिहासिक और (ग) तात्विक ऐसे तीन भागोंमें विभक्त रहा है। इन सभी अनुसन्धान योग्य मंजरी (अजितसेन), ३. त्रिलोकसारटीका (सहस्रकीर्ति), विषयोंके लिये वीरसेवामन्दिरकी अधिकांश ग्रन्थराशिके ३५ चन्द्रप्रभचरित्र (शुभचन्द्र), ३६ परमार्थोपदेश (ज्ञानअतिरिक्त विल्ली, जयपुर, भामेर, अजमेर, नागौर, कानपुर, भूषण), ३६ A प्रायसदभाव (मल्लिषण), ३६ B कर्म ' प्रकृति इत्यादि। सहारनपुर, एटा, इटावा, पारा, कांधला, कैराना, हांसी, हिसार, रोहतक, फरुखनगर, शाहगढ़, सागर और कौडि- अपभ्रंश प्रन्थ-३७ पावपुराण (पकीर्ति), ३८ यागंज भादिके अनेकानेक शास्त्रमण्डारोंको देखा गया, जम्बूस्वामिचरित्र (कवि वीर), जिनदत्त चरित्र (पं० लाखू) हजारों प्रन्थों पर रष्टि डाली गई और सैकड़ों प्रन्थों परसे ४. पावपुराण (विबुध श्रीधर), सुदर्शनचरित्र (नयनोट्स लिये गये, जिनका उपयोग कितने ही विषयोंके नन्दी), ४२ रनकरण्डश्रावकाचार (4. श्रीचन्द्र), ४३ नियमें हुमा है और मागे होने वाला है। षट्कर्मोपदेश (अमरकीर्ति),४ बाहुबलिचरित्र (धनपास),

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