Book Title: Anekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 436
________________ किरण ११] नामसे तैय्यार कराया गया, जो अनुसन्धान, अनुवाद तथा निर्माण कार्यों में सहायक हो सके और जिसे 'समन्तभद्र-भारती' नामसे प्रस्तुत किये जाने वाले महान् ग्रन्थके साथ देनेका विचार है । वीर सेवामन्दिरका संक्षिप्त परिचय ३. त्रिलोकप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्राकृत पंचसंग्रह और न्यायविनिश्चय आदि कितने ही ग्रन्थों की अलगअलग पद्यानुक्रमणिकाएं तैय्यार कराई गई । ४. प्रायः २०० दिगम्बर और २०० श्वेताम्बर ग्रंथोंने पदार्थोंके लक्षणस्वरूपादिका एक अभूतपूर्व विशाल संग्रह कारादिक्रमसे प्रस्तुत किया गया, जो अनेक विद्वानोंके कई वर्ष परिश्रमका फल है । यह संग्रह, सम्पादन एवं एक-एक विषयके अनेक लक्षणांके कालक्रमसे क्रमीकरण के 'अनन्तर, 'जैनलक्षणावली' अर्थात् लक्षणात्मक जैन-पारिभाषिक शब्दकोष के नामसे पांच-छह बड़े-बड़े खण्डों में प्रकाशित होगा। साथ में हिन्दी लक्षणोंका भी आयोजन रहेगा । और इसलिए यह महान् ग्रन्थ सभी स्वाध्यायप्रेमियों. प्रन्यादि-लेखकों, शांध-ग्वोज तथा किसी विषय के निर्णयका काम करने वालोके लिये बड़े ही कामकी चीज होगा । ५ विविध जैनग्रन्थोंसे आदि-अन्तभागादिके रूपमें प्रशस्तियं का संग्रह करके उन्हें 'जैनग्रन्थ-प्रशस्ति-संग्रह के नामसे फिलहाल दो बड़े भागों में विभक्त किया गया है । पहले भाग में उन संस्कृत तथा प्राकृत ग्रन्थोंकी प्रशस्तियोंका संग्रह किया गया जो अभी तक प्रायः श्रप्रकाशित हैं या प्रकाशित होकर भी अन्तिम प्रशस्तिभागसे शून्य हैं अथवा किसी प्रशस्ति में कुछ गलनीको लिये हुए हैं। दुसरे भाग में अपभ्रंश भाषाके ऐसे ही ग्रन्थोंकी नशस्तियों का संग्रह है जो प्रायः अप्रकाशित हैं। पहला भाग छप रहा है और दूसरा भाग प्रेसको जानेकी तैयारी में हैं । इन दोनों प्रशस्तसंग्रहोंमें इतिहासकी प्रचुर सामग्री भरी पड़ी है । ६ दिगम्बर जैनग्रन्थोंकी एक मुकम्मल सूची भी कुछ सेंसे वीरसेवामन्दिर में तय्यार हो रही है, जिससे दिगम्बर साहित्यका ठीक अन्दाजा लगाया जा सकेगा और हर जैनीको अपने घरकी इस साहित्य-पूँजीका पता चल सकेगा। इस दिशा में अब तक जो काम हुआ है उसके फलस्वरूप कई हज़ार प्रन्थों की सूची 'अनेकान्त' में प्रका [ ३८७ शित की जा चुकी है । दूसरे ग्रन्थोंकी सूचीका पता लगाया जा रहा है और शास्त्र भण्डारोंकी सूचियोंमें जो गलतियों हैं उनके संशोधनका कार्य भी हो रहा है। ७ 'पुरातन जैन वाक्य सूची' के रूपमें प्राकृत भाषाके ६४ दिगम्बर जैनग्रन्थोंकी अकारादि क्रमसे एक जनरल पथानुक्रमणी तय्यार कराई गई और उसके साथमें ४८ टीकादि ग्रन्थोंमें उद्धृत दूसरे प्राकृत पथोंकी भी अनुकमणी तयार करा कर लगाई गई । और भी कुछ उपयोगी परिशिष्टांकी योजना की गई। साथ ही ग्रन्थ-ग्रन्थकारादि विषयक गवेषणाओंसे परिपूर्ण १७० पृष्ठकी महती प्रस्तावना भी लिखकर लगाई गई और प्रस्तावनाकी उपयोगिताको बढानेके लिये उसकी 8 पृष्ठकी नामसूची भी तय्यार करा कर लगानी पड़ी। इस तरह ग्रन्थकी तय्यारीमें ही नहीं किन्तु छपाईक प्रूफरीडिंग जैसे काम में भी मन्दिरके कई विद्वानोंको भारी परिश्रम उठाना पड़ा है, तब यह महान् मौलिक ग्रन्थ विद्वानोंके हाथोंमें दिया जा सका है। (८) वीरसेवामन्दरसे प्रकाशित जिन दूसरे प्रमथोंकी प्रस्ताननाओं के निर्माणका कार्य मन्दिरमें हुआ है उनके नाम कुछ प्रस्तावनाओंके वकटमें ) पृष्ठांक सहित इस प्रकार हैं: १ समाधितन्त्र (२१, २ श्रध्वात्मकमलमार्तण्ड ७८ ) ३ श्राप्तपरीक्षा २४), ४ स्वयम्भूस्तोत्र ( १०६), ५ युक्त्यनुशासन ३६ ), ६ स्तुतिविद्या (३१), ७ उमास्वामिश्रा ० परीक्षा (१४), ८ श्रीपुरपार्श्वनाथस्तोत्र (१६), ६ शासनचतुस्त्रिशिका (१३), १० सत्साधुस्मरण - मंगलपाठ, ११ प्रभाचन्द्रीय तस्वार्थसूत्र (८), १२ अनित्यभावना, १३ न्यायदीपिका (१०१), १४ बनारसीनाममामा शब्दकोशसहित १२ + ५४ ) । इनके अतिरिक्त जैनग्रन्थप्रशस्तिसंग्रह (प्रथम भाग ) जो अभी अप्रकाशित है उसकी प्रस्तावना लिखी जा चुकी है और वह करीब १५० पृष्ठकी होगी। 4 ग्रन्थोंकी प्रस्तावनाओंसे भी बड़ा निर्माण-काय जो वीरमेवामन्दिर में हुआ है वह उन लेखोंका रचनाकार्य है जो समय समय पर मन्दिरके विद्वानों द्वारा खोजके साथ लिखे जाकर 'अनेकान्त' मासिकमें प्रकाशित हुए हैं और जिनसे कितने ही महत्वपूर्ण साहित्यकी नई सृष्टि हुई है ।

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