Book Title: Anekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 439
________________ ३६.] अनेकान्त [किरण १० पं.दीपचन्द पांड्या-१ चूनही, २ यशस्मिलकका प्रायः वे ही लोग कर सकते हैं जो स्वयं ऐसे कार्योंको संशोधन, ३ वरदत्तकी निर्वाणभूमि और वरांगके निर्वाण करने में संलग्न रहते हैं अथवा उस विषयका विशेष अनुपर विचार । भव रखते हैं। 4. ताराचन्द्र दर्शनशास्त्री-१दर्शमोंकी स्थूल अनुव कायं रूपरेखा, २ दर्शनोंकी पास्तिकता नास्तिकताका प्राधार । (10) वीरसेवामन्दिर में जिन ग्रन्थों आदिका हिन्दीमें बाबू जयभगवानवकील- जैनकला और उसका अनुवाद हुआ है उनकी सूची इस प्रकार है:महत्व, २ भगवान महावीरकी झांकी। १. स्वयम्भू-स्तोत्र, .. युक्त्यनुशासन, ३. समीचीन-धर्म[वीरसेवामन्दिरमें न रहनेके बाद भी भापके द्वारा शास्त्र, (रत्नकरंड), ४. न्यायदीपिका, ५. प्राप्तपरीक्षा. कई लेख मन्दिरकी खास प्रेरणाको पाकर लिखे गये हैं। मटीक, ६. अध्यात्मकमलमार्तण्ड, ७. श्रीपुरपार्श्वनाथजैसे- भारतीय इतिहासमें महावीरका स्थान, २ मोहन स्तोत्र, ८. शासनचतुनिशिका, १, प्रभाचन्द्रका तत्वार्थसूत्र, जोदडोकालीन श्रमण-संस्कृति, ३ भारत कीअहिसा संस्कृति १० सन्साधु-स्मरण-मंगलपाठ, जिसमें 'समन्तभद्र-भारती४ भारतमें प्रात्मविद्याकी अटूट धारा।] स्तोत्र' भी शामिल है, ११. अपराध क्षमापणस्तोत्र, १२ बाब ज्योतिप्रसाद एम० ए०-साहित्यका महत्व, अर्हन्महानदस्त्येत्र, १३. प्राकृत पंचसंग्रह, १४. इप्टोपदेश, .२ एक अन्तःसाम्प्रदायिक निर्णय, ३ मैन वाङ्मयका १५. कर्मप्रकृति प्राकृत, १६. अनिन्यभावना, १७. श्री भद्रप्रथमानुयोग, जैन सरस्वती, ५ जैन स्थापत्यकी कुछ बाहुस्वामी (गुजराती), १८. गोम्मट (अंग्रेजी), १६. द्वितीय विशेषताएं, ६ तेरह काठिया, . धर्म और नारी गोम्मटसार जीवकांडकी टीका, उसका कर्तृत्व और समय धवला-प्रशस्तिके राष्ट्रकूट नरेश, . प्राचीन जैन मन्दिरों- (अंग्रेजी), २०. पंडित गुण ( कविनन्दु), २१. देवागम के ससे मस्जिद, १० बंगालके कुछ प्राचीन जैनस्थल, (अपूर्ण), २२. संस्कृतके बहुतसे प्रकीर्णक पद्य जो अनेकांत बौद्धाचार्य बुद्धघोष और महावीरकालोन जैन । में अनेक रूपसे प्रकाशित होते रहे हैं। बाबू बालचन्द एम. ए. द्वारा-१ मौर्य समाटका इनके अलावा 'स्तुति-विद्या' और 'मरुदेवी-स्वप्नासंचित इतिहास, २ जैन गुहामन्दिर, ३ ऐतिहासिक भारत वली' का अनुवाद साहित्याचार्य पं. पनालालजी सागरसे की पाच मूर्तियां, ४ पुरातनजनशिल्प-कलाका संक्षिप्त कराया गया है। परिचय, ५ सोनागिरिकी वर्तमान भट्टारक गद्दोका सम्पादन-कार्य इतिहास। (४) सम्पादनमें प्रन्थों, लेखों तथा कविताओंको इन सब लेखों तथा अन्य-प्रस्तावनाको लिखनेके संशोधन, संस्करण, उपयुक्त टिप्पण अथवा संसूचनके द्वारा लिये कितना अनुसन्धान किया गया, अनुसन्धानके पीछे उपयोगी प्रकाशनके योग्य बनाया जाता है। इस दृप्टिसे कितने प्रन्थोंको देखा गया, कितने अधिक नोट्स लिये वीरसेवामन्दिरमें १०-११ वर्ष तक 'अनेकान्त' मासिकका गये-और इन सबके साथ कितना परिश्रम उठाना पड़ा, सम्पादन-कार्य हुया है और साथ ही उन सब ग्रन्थोंका इसका कोई अन्दाजा नहीं लगाया जा सकता और न सूची सम्पादन-कार्य हुमा है जो वीरसेवामन्दिरसे प्रकाशित हुए ही दी जा सकती है। हाँ शोध-खोज एवं विवेचनासे हैं और जिन प्रकाशनांकी एक सूची आगे दी गई है। इन सम्बन्ध रखने वाले उन लेम्बों तथा प्रस्तावनाओं परसे उसका ग्रन्थोंके अलावा बीसियों स्तुति-स्तोयादि ग्रन्थ ऐसे भी है कुछ प्राभास जरूर मिल सकता है। शोध-योजका काम __ जो अलगसे प्रकाशित नहीं हुए हैं किन्तु उन पर सम्पादन हाकिटानी कार्य हश्रा है और वे 'अनेकान्त' में प्रकाशित किये पहार और निकली चूहिया' की कहावतको चरितार्थ गये । करता है। कभी-कभी तो पहाड़ खोदने पर चूहिया भी प्रकाशन-कार्य नहीं निकलती, ऐसी हस अनुसन्धानकी हालत है। अतः (१२) प्रकाशन-कार्य में प्रसादिकी योजनाओंके साथ, ऐसे अनुसन्धान प्रधान निर्माणकार्योंका ठीक मूल्यांकन ग्रन्थों तथा लेखोंकी प्रस-कापियों और प्रूफरीडिंगका बहुत

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