Book Title: Anekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 449
________________ भनेकान्त [किरण १२ - गन्ध-कुटी तब रखी गई देवोंके द्वारा, जिसमें वही अटूट भवद्वचनाऽमृत-धारा । पीकर भात्म-विकास मार्गको सबने जाना, जिनकाथा भव निकट, योग-व्रत उनने ठाना ।। ३१ ॥ भन्त समय कैलाश-शिखरसे निति पाई, जहाँ पिता भादीश राजते थे सुखदाई । भावागमन-विमुक हुए, भव-बाधा टाली, शाश्वत-सुखमें मग्न हुए, निजश्री सब पाली ।। ३२ ।। इस युगके हो प्रथम सिद्ध भगवान हमारे, ऋषभदेव से पूर्व, परम शिवधाम पधारे। निजाऽऽदर्श रख गये जगतके सन्मुख ऐसा, बन भव्य 'युगबोर' त्याग सब कोंडो-पैसा ॥ ३३ ॥ (पाशीर्वाद) बाहुबली जिनराजको, जो ध्या धर ध्यान । सब दुल-दंगल दूर कर, लहें परम कल्याण ॥ इति श्रीबाहुबलिजिन-पूजा मोट-श्रीगोम्मटेश्वरकी मात्रा उपलपमें मुख्तार श्रीजुगलकिशोर-द्वारा लिखो गई इस नई भावभरी पूजाको कुछ मोटे टाइपमें अलगसे उत्तम कागजपर पुस्तकाकार पाने का विचार है, जिसके साथमें बाहुबलीजीका नया सुन्दर चित्र भी रहेगा। जिन सज्जनोंको अपने कटम्ब-परिवारके लिये बांटनेके लिये अथवा बेचनेके लिये जितनी प्रतियों की जरूरत हो उन्हें वे शीघ्र रिजर्व करालेवें। क्योंकि प्रायः मांगके अनुसार ही प्रतियाँ छपाई जायेगी। बागत मूल्य प्रायः ढाई माने होगा। बांटने प्रादिके लिये अधिक प्रतियाँ लेने वालोंको लागतसे भी कम भूरपमें दी जावेंगी। इससे कम प्रतियों रिजर्व नहीं की जाएगी। जो सज्जन बांटनेके लिये ... या इससे ऊपर प्रतियाँ चाहेंगे उनके नाम पुस्तक में दिये जायेंगे, और उन प्रतियोंको बिना मूल्य रक्खा जायेगा। -प्रकाशनविभाग वीरसेवामन्दिर । जिन-धुनि महिमा धन्य धन्य है घड़ी भाजकी जिन-धनि वन परी । तत्व-प्रतीति भई अब मेरे, मिथ्याष्ट टरी ।। जड़से भिन्न लखी चिन्मति, चेतन स्वरस भरी। महकार ममकार बुद्धि पुनि परमें सब प्रहरी ॥ धन्य०॥१॥ पाप-पुन्य विधि'ध-अवस्था, भासी दुखभरी ।। वीतराग-विज्ञान-भावमय, परिनत निज निखरी॥ धन्य० ॥२॥. चाह-दाह बिनसी वरसी पुनि, समता मेघ-झरी। पादी प्रीति निराकुल-पदसों 'भागचन्द' हमरी ॥ धन्य० ॥३: पं० भागचन्द

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