Book Title: Anekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 374
________________ ब्रह्म जिनदास (ले० परमानन्द जैन शास्त्री) ब्रह्मजिनदास कुन्दकुन्दान्वय सरस्वति गच्छके भट्टारक उल्लेख गुजराती कविताके निम्न उपयोगी अंशसे जाना सकलकीनिके कनिष्ट भ्राता और शिष्य थे। ये मदनरूपी जा सकता है:शत्रुको जीतने वाले ब्रह्मचारी, क्षमानिधि. षष्टमादितपके तिहि अवसरे गुरु प्राविया, बहाली नगर मझाररे । विधाता और अनेक परीषहाँके विजेता थे। इन्होंने अनेक चातुर्मास निहीं करो शोभनो, श्रावक कीधा हर्ष अपाररे । देशों में विहार करके जननाका कल्याण किया था उन्हें अमीझरे पधरावियां बधाई गावे नर नाररे। सन्मार्ग दिग्बलाया था। ये जिनेन्द्रके चरणकमलोके सफलसंघ मिलि बंदियों पाम्या जय जयकाररे। चंचरीक, देव-शास्त्र-गुरुकी भक्ति में तत्पर, अत्यन्त दयालु तथा सार्थक जिनदाम नाममे प्रसिद्धिको प्राप्त थे और मंवत् चौदहसी इक्यासी भला श्रावणमास लसंतरे । प्राकृत, संस्कृत, गुजगती नथा हिन्दी भाषाके अच्छे पूर्णिमा दिवसे पुरणकर्या, मूलाचार महन्तरे ॥ विद्वान एवं कवि भी थे। इनके गुरु भट्टारक मकलकीर्ति प्रसिद्ध विद्वान थे जिनका संस्कृत भाषा पर अच्छा अधि प्राताना अनुग्रह थकी कीधा ग्रन्थ महानरे ॥ कार था, नात्कालिक भट्टारकोंम उनकी अच्छी प्रतिष्ठा थी। यपि मकलकीसिने अपने किसी भी ग्रन्थमें उसका इन्होंने अपने समयमे अनेक मन्दिर बनवाए, सैकडो रचनाकाल नही दिया, फिर भी अन्य माधोप-मूतिमूर्तियांका निर्माण कराया और उनके प्रतिष्ठादि महात्मव लेवादिक द्वारा उनका समय विक्रमकी १६ वीं शताब्दी कार्य भी सम्पन्न किये हैं। इनके द्वारा प्रतिष्ठित मृतियोंक का उत्तराद्ध सुनिश्चित है भिट्टारक मलकीति ईडर गहीके कितने ही अभिलंम्ब मं० १४८० मे १४६२ तकके गरी भट्टारक थे और भ. पद्मनन्दीक पद पर प्रतिष्ठित हुए थे। नोट बुकर्म दर्ज है। इनके अतिरिक्त अनेक मृर्तियां और कहा जाता है कि वे सं० १४४४ में उक्त गद्दी पर यासीन उनके अभिलेग्य और भी नोट किये जाने को है। जिन हुए थे और सं० १४६के पूप मासमें उनकी मृत्यु महसाना मबके संकलित होने पर तत्कालीन ऐतिहामिक नामांक (गुजरात) में हुई थी। महमानाम उनका समाधि स्थान अन्वेषणमं बहुत कुछ सुविधा प्राप्त हो सकती है। भी बना हुआ है। भ. मकलकीनिंद्वारा रचित प्रन्योंके भ. मकलकीर्तिने सं0१४८1 में संघहित बडाली नाम इस प्रकार हैं। जिनमें उनकी विद्वत्ता और माहिल्यमें चातर्माम किया था और वहांके अमीकग पाश्वनाथ मंवाका अनुमान किया जा सकता है:चैत्यालयमें बैठकर 'मुलाचार प्रदीप' नामका एक मंस्कृत- १. पुगणमार, .. मिहान्तमारदीपक, ३. मल्लिग्रन्थ सं० १४८ की श्रावण शुक्ला पूणिमाको अपने नाथ चरित्र, ४. यशोधर चरित्र, ५. वृपभचरित (गादिकनिष्ट भ्राता जिनदापके अनुग्रहसे पूरा किया था। जिसका नाथ पुराण), ६. सुदर्शनचरित, ७. सुकमालचरित, ८. विक्रमकी १५ वीं शताब्दीमे बडाली जन धन वर्धमानचरित. .. पार्श्वनाथपुगण, १०. मलाचारप्रदीप, सम्पन्न नगर था, उस समय वहाँ हुमड दिगम्बर जैन . याश्चतुर्वितिका, १२. धर्मप्रश्नोत्तरश्रावकाचार, श्रावकोंकी वम्ती थी। वहांका अमीझरा पार्श्वनाथका १७. सद्भामितावली, ४. धन्यकुमारचरित्र, १५.कर्मविपाक. मन्दिर बहुत प्रसिद्ध था। उस समय देवम्मी नामके एक १६. जम्बस्वामीचरित्र, १७. श्रीपालचरित्र भादि । वीमा हुमडने केशरियाजीकी यात्राका संघ भी निकाला ब्रह्मजिन दामने भी अनेक प्रन्योंकी रचनाकी *जिनमें था और मकलकीर्ति उम ममयके प्रमित विद्वान भट्टारक भ. मकलकीतिका बड़े गौरवकं माथ स्मरण किया है। थे। बागढ़ और गुजरातमें उनका अच्छा प्रभाव था वे इनके अनेक शिष्य थे जिनमें कुछका इन्होंने अपनी अपने शिष्य प्रशिष्यादि महित उक प्रान्तमें विहार करते प्रन्याम उल्लेख किया है। चूंकि जिनदाय सकलकीर्तिके हुए जैन धर्मका उद्योत कर रहे थे। कनिष्ट भ्राता थे । इसलिये इनका समय भी विक्रमकी

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