Book Title: Anekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 401
________________ अनेकान्त [ किरण १० थोड़े ही दिनामें हम देखेंगे कि जमीन अनाप-सनाप माल पैदा कर रही है, और हमारा भारत हरा-भरा फूला-फला हो रहा है। ३५६ ] की व्यवस्था करें । गरीब किसानों और बेकार हरिजनोंको सौ-सौ पचास-पचास गोवंश खरीद कर दे दें । दान करदें तो अत्युत्तम अन्यथा उनके नामे बिना ब्याज उधारी रुपए मांडकर उनकी सुविधाके अनुसार उनसे वसूल कर लेवें । शासकोंको समझा कर उनसे गायो के चरने के स्थान विस्तृत करवायें और टैक्स छुड़वा दें। विलायती दूध मक्खन खाना छोड़ें। जीवित पशुका चमड़ा वर्तना त्यागकरें और जीवित पशु करल न करनेका कानून बनावें इत्यादि तरीकोंसे गोरक्षा और जमीन-रक्षा दोनों होगी । इलायची (ला० जुगलकिशोरजी ) इलायची खाने में बड़ी स्वादिष्ट और गुणोंमें परिपूर्ण होती है, प्रायः किसी भी दशामें और किसी समय हानिकारक प्रतीत नहीं होती । जिह्वा (जीभ ) के बिगड़े हुए स्वादको वह तुरन्त ही स्वादिष्ट एवं सुगन्धित बना देती है । इलायची देखनेमें छोटी और भद्दी सी जान पड़ती है, अन्दरसे काले काले छोटे छोटे दानोंको लिये हुए होती है। खानेमें हल्की और अत्यन्त रुचिकर होती है। जो मनुष्य इसके रहस्यको नहीं जानता वह इसका मूल्य किसी प्रकार भी नहीं भोंक सकता । इस छोटी सी इलायची में ऐसी कौनसी करामात भरी हुई है जिससे उसे सब लोग चाहते हैं, इलायचीके ऊपर सबसे पहले छिलका देखनेमें श्राता है वह पतला है और खानेमें कुछ स्वादिष्ट प्रतीत नहीं होता, परन्तु वह भीतरके बीज पदार्थकी रक्षा करनेमें समर्थ है। इलायची के बीजोंमें जो तरावट व सुगन्धि होती है वह उस छिलके द्वारा ही रक्षित रहती है, छिलका हटा कर मुखके द्वारा उसका चर्वण करनेसे रसास्वाद खानेवाले के चितको प्रसन्न कर देता है, यह उस छिलकेका ही प्रभाव है या इलायचीके बीजों का ? यह बात यहाँ विचारणीय है । बस यह गोवंश प्रति वैश्योंका कर्तव्य है । अगर वे इसका पालन नहीं करेंगे तो श्री बंकिमचन्द्रके कथनानुसार गोवंशका और उसके साथ ही हमारी हिन्दू जातिका लोप होजाना निश्चित है। आश है हम इस कलंकके भागी नहीं बननेका भरसक प्रयत्न करेंगे और अपने कर्तव्यका पालन करेंगे । छिलका पहले बना या बीज, बीजसे छिलका बना या छिलकेसे बीज ? दो वस्तुएँ एक साथ उत्पन्न होती हुई भी अनुभव नहीं आ रही हैं, न छिलका पहले बना और न पहले बीज ही बना, न बीजसे छिलका और न छिलके से बीज; किन्तु बीजसे बीज बना और छिलकेसे छिलका, यदि ऐसा मान लिया जाय तो कोई हानि देखने में नहीं आती, छिलका और बीज दोनों ही पदार्थं अपनी अपनी स्वतन्त्र - सत्ताको लिये हुए हैं और दोनों अनादि हैं, दोनों एक ही स्थानमें उत्पन्न हुए हैं, पर अपने अपने भिन्न गुण धौर स्वभावको लिये हुए होनेक कारण दोनों ही जुदे जुदे पदार्थ हैं, और दोनों में ही परस्पर निमित्त, नैमित्तिक भाव पाया जाता है। संगतिका प्रभाव इलायचीका छिलका और बीज दो पृथक् पृथक् नाम हैं - यह दो पदार्थ हैं, दोनों एक दूसरे से भिन्न करने पर free हो जाते हैं । छिलका पृथक् होने पर इलायचीका forका, और बीज पृथक होने पर इलायचीका बीज, ऐसा कहा जाता है, इलायची शब्द एक, पदार्थ दो एक साथ उत्पन्न हों, एक ही समय में उत्पन्न हों, और एक ही समयमें एक दूसरे से भिन्न हो जावें, फिर भी अपने अपने साथ पूर्व शब्द से अलंकृत रहें-यह भी एक अनोखी ही बात 1 छिलकेके गुण अन्य, बीजांके गुण अन्य - एक दूसरेके साथ उत्पन्न होने पर भी बीज अपने गुण छिलकेको नहीं देता, और न बीज ही वैसा करनेमें समर्थ होता है । यह कैसी मित्रता हैं ? बीजके साथ जब तक छिलका एक साथ रहता है तब तक उस छिलकेकी तरी बनी रहती है, छिलका अलग हो जाने पर जरा सी देर में वह अपनी स्निग्धताको त्याग कर रूक्ष हो जाता है- रूखेपनमें बदल जाता है— सार-रहित होकर घृणाका पात्र बन जाता है ।

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