Book Title: Anekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 405
________________ ३६०] अनेकान्त [किरण १० निम्न चार तीर्थंकरोंकी मूर्तियां अंकित हैं-पार्श्वनाथ, गांव उकदि. जैन पार्श्वनाथ मन्दिरको दिये थे। चौहान वर्धमान स्वामो, नेमोनाथ और सम्भवनाथ । इनके चिन्ह वंशकी उक्त वंशावली निम्न प्रकार है:कुछ अस्पष्टसे प्रतीत होते हैं । इन प्रतिविम्बोंके नीचे चारों तरफ मुनियोंकी मूर्तियाँ उकेरी हुई हैं। यह निषे चाहुमान धिका भट्टारक शुभचन्द्र के शिष्य हेमकीर्तिकी है, जो सं० १५६५ फाल्गुन सुदि । बुधवारके दिन उत्कीर्ण की गई २ विष्णु (वासुदेव) है। यह लेख भी पागे दिया जायगा। ३ सामन्तदेव इन देवालयोंसे थोड़ी दूरपर जीई-शीर्ण दशामें 'रेवतीकुण्ड' नामका एक कुण्ड है जो अपनी महत्ता और ४ पुरन्टला अतिशयके लिये प्रसिद्ध था। और उसमें स्नान करने वाले ब्राह्मण क्षत्रो वैश्य और शूध आरोग्यादिका लाभ ५ जयराज पुत्र सामन्तदेव) करते थे । समीपमें छोटा सा बाग भी था। मुख्य पार्श्वनाथके मन्दिरमें सरोवरके उत्तर की ओर ६ विग्रहनृप (विग्रहराज (प्रथम) भीतके पास महुश्रा-वृक्ष के नीचे एक वृहशिलापर बड़ाभारी लेख अंकित है। और दूसरीपर दूसरा उन्नति शिवर ७ चन्द्रराज (प्रथम) पुराण नामका एक काव्य ग्रन्थ है, जो अभीतक अप्रकाशित है । ये दोनों ही लेख वि० सं० १२२६ के उत्कीर्ण किये हुए हैं। जिन्हें लोलाक श्रेष्ठीने उत्कीर्ण कराया था। ८ गोपेन्द्रक (गोपेन्द्रराज) इनमेंसे प्रथम लेख ३० पंक्तियों में लिखा गया है । इस लेखको किसीने नष्ट करनेका विचारकर सुरंग लगाई थी, ___ दुर्लभराज प्रथम) परन्तु मधुमक्खियोंके उपद्रवसे वह नष्ट नहीं हो सका. १० गुवक (प्रथम) गोविन्दराज (पुत्र दुर्लभराज) किन्तु उसे काफी क्षति पहुँची है। अब इन दोनों लेखोंपर वि० सं० १३ (716 A. D.) छतरी बन गई है जिससे वर्षा श्रादिसे उनकी सुरक्षा हो ११ चन्द्रराज (द्वितीय) पुत्र गोविन्दराज गई है। इनमेंसे प्रथम लेखकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि श्रेष्ठी लोलाकने इस शिलालेखमें सांभर और अंज- १२ गूबक (द्वितीय) मेरके चौहान वंशी राजाओंकी जो वंशावली दी है तथा उनमेंसे किसी-किसीका कुछ परिचय भी दिया है। वह १३ चन्दनराज (पुत्र गूवक द्वितीय) वंशावली शुद्ध और प्रामाणिक है। इसकी प्रामाणिकताको महमना स्वर्गीय गौरीशंकर हीराचन्द जी अोझाने अपने १४ वाकपतिराज ( पुत्र चन्दनराज) राजपूतानेके इतिहास में स्वयं स्वीकार किया है, क्योंकि शेखावटी गत हर्षनाथके मन्दिरमें उत्कीर्ण वि० सं० १०३० १५ विन्ध्य नृपति की चौहान राजा सिंहराजके पुत्र विग्रहराजके समयकी प्रशस्तिमें उल्लिखित नामोंसे, और जोधपुरके कनसरिया १६ सिंहराज (ज्येष्ठ पुत्र वाक्पतिराज) इसने वि० सं० नामक गांवसे सांभरके चौहान राजा दुर्लभसेनके सम्बत् १०१३ (956 A. D..) में हर्षनाथका १०१६ के शिलालेख, तथा 'पृथ्वीराज विजय' नामक महा मन्दिर बनवा कर उस पर सुवर्ण कलश काव्यमें उल्लिखित नामोंसे वे यथार्थ रूपमें मिल जाते हैं। चढ़वाया और उसके निर्वाहार्थ गांव इस वंशावलीके अन्तिम दो राजाओंने-पृथ्वीराज द्वितीय दान दिये थे। इसने मुसलमानोंसे अनेक और सोमेश्वरने-दो गांव दानमें दिये थे । जिनमेंसे युद्ध कर उन्हें विजित कर उनके हाथी पृथ्वीराजने 'मोराझरी' गांव और सोमेश्वरने रेवणा' नामके छीन लिये थे।

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