Book Title: Anekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 423
________________ ३७४ ] अनेकान्त |किरण ११ जो शक संवत् १०१ (वि.सं. १८६) में विद्यमान पराजित किया था, और सन १९८२ वि० संवत् १२३६ था। यह पश्चिमी सोलंकी राजा सोमेश्वर तृतीयका में महोवाके चंदेलवंशी राजा परमार्दिदेव पर किया मामन्त था। नवादी जिला बीजापुरके निकटका स्थान था। उस युद्ध में राजा परिमल हार गया था जिसका उल्लेख उसके पाधीन था। इसके पुत्रका नाम विज्जलदेव था। ललितपुरके पास 'मदनपुर' के एक लेख में मिलता है। संभव है इसके राज्यका विस्तार बिलासपुर तक रहा हो। बहुत सम्भव है कि इसका राज्य विलासपुरमें रहा हो; दूसरे परमार्दि, परमल या परमार्डिदेव वे हैं जिनका क्योंकि इसके वहाँ राज्य होने की अधिक संभावना है। गज्य जेजासकूती महोवामें था। और जिनकी राजधानी खजु- यदि यह अनुमान ठीक हो तो प्रस्तुत 'धन्यकुमार चरित' राहामें थी। वीं सदी में वहाँ चन्देलवंशी राजाओंका बल का रचनाकाल विक्रमकी १३ वीं शताब्दी हो सकता है। बढ़ा, उसका प्रथम राजा नानकदेव था और पाठवां राजा धंग- मदनपुरके जैनमन्दिरमें एक बारादरी है, जो खुली राज । जैसा कि ईस्वी सन् १४के लेखसे - प्रकट है। इनमें हुई ६ मम चौरस खंभोंसे रक्षित है। इसके खंभों पर एक राजा परमल या परमादिदेव नामका हो गया है जिसके बहुत ही मूल्यवान एवं उपयोगी लेख अंकित हैं। यहाँ प्रसिद्ध पाल्हा (पाला) ऊनल नौकर थे और जो इनमें दो छोटे लेख चौहान राजा पृथ्वीराजके राज्य गृथ्वीराज चौहानके युद्धमें पराजित हुए थे । यह हमला समयके हैं। जिनमें उन राजा परमादिको व उसके पृथ्वीराज चौहानने, जो पृथ्वीराज तृतीयके नामसे प्रसिद्ध देश 'जंजासकृती' को सं० १२३६ या॥82 A.D. है, सोमेश्वरका पुत्र और उत्तराधिकारी था। इसके पिता में विजित करनेका उल्लेग्य है । इस मदनपुरको चंदेलसोमेश्वरकी मृत्यु वि० सं० १२३६ में हुई थी। पृथ्वीराज वंशी प्रसिद्ध राजा मदनवर्माने बसाया था । इमीमे बदा प्रतापी और वीर था। इसने गुजरातके राजाको इसका नाम मदनपुर श्राजतक प्रसिद्धि में पा रहा है। * देखो, भारतके प्राचीन राज्यवंश प्रथम भाग पृ०६३ । प्रशस्ति संग्रह प्रथमभागकी प्रस्तावनाका अप्रकाशित x देखो इंडियन एस्टीक्वेरी भाग। अंश । -- --- - सरस्वती भवनोंके लिये व्यावहारिक योजना [श्री एन० सी० वाकलीवाल 1 (७) रा और निर्माणके सिद्धान्तोंको प्रधानता लिये बदला, मूल्य या उधारकी सुवधानोंका प्रचार और दी जाय। प्रसार किया जाय। (२) देश भरके सभी स्थानोंके उपलब्ध उत्कीर्ण तथा हस्तलिखित ग्रन्थों व मन्दरादिमें संग्रहीत अन्य पुरातत्व (५) अनुपलब्ध पुरातत्व की ३ अवस्थायें हो सकती सामग्री की सूची और विवरण प्रासकर सम्मिलित सूची है (1) देशके बाहर गया हुश्रा अथवा देशमें ही किसी तैयार कराई जाय। अन्य समाज या सरकारी पुस्तकालयों आदिमें अज्ञात (३) सम्मिलित सूचीके अनुसार जहां जहां जो अवस्थामें पड़ा हुआ, (२) भूगर्भ या अज्ञात स्थानों में छुपा सामग्री बिना प्रयोजन पड़ी हो या भली भांति रचित न हुश्रा, (३) समाजके व्यक्तियों द्वारा छुपाया हुआ अथवा हो उसे अधिक सुरक्षित और आवश्यकताके स्थानों पर प्रतिबन्ध रखा हुआ। रखने की व्यवस्था को जाय । इनमेंसे प्रथम अवस्थाके लिये दस हजार पोंड या एक (५) हस्त लिपिका अभ्यास बना रखने और ग्रन्थों- लाख रुपयेका पुरस्कार उस तमाम साहित्यके लिये घोषित की नाना स्थानों पर विपुखता और उपयोगिता बढ़ानेके किया जाय जोकि ज्ञानमें लाया जा सके । और ऐसे साथ साथ सुरक्षाकी रष्टिसे हस्तलिखित प्रन्थों परसे पठन साहित्यकी सूची और परिचयका कार्य अविलम्ब पूरा पाठन करनेकी प्रथाको पुनर्जीवित किया जाय और उसके किया जाय ।

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