Book Title: Anekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 398
________________ [३५३ किरण १०] गौ रक्षा, कृषि और वैश्य समाज उक्कं च धर्मचक्रवर श्रीदेवनन्दिना - एक स्थल पर भगवान्के रूपका वर्णन करते हुए स्फुरदरसइस्तरुचिर विमलमहारत्नकिरण निकरपरीतम्। लिखा है :प्रहसितमहस्रकिरण द्य ति मंडलमप्रगामि धर्मसुचक्रम् ॥१२-"दिवाकरसहस्रभासुरमपीक्षणानां प्रियम" श्री देवनन्दिके नामसे उपलब्ध रचनायों में उक्त श्लोक इति गौतमस्वामिना-जिनरूप वर्णनत्वात । अनुपलब्ध है. जिससे ज्ञात होता है कि श्री देवनन्दिने ३-अताम्र नयनोत्पल सकलकोपवन्यात कोई पद्यमय अन्धकी रचनाकी है. जिसमेंसे कि उक रखोक कटाक्षशरमोक्षहीनमविकारितोडेकतः। उद्धृत किया गया है। विषादमदानितः प्रहसितायमानं सदा पूज्यपादके नामसे कई श्लोक उबूत है, जो कि उनके द्वारा रचित............."में पाये जाते हैं। पर एक स्थल मुखं कथयतीव ते हृदयशुद्धिमात्यन्तिकीम् ।। पर जो केवलज्ञानके स्वरूपका वर्णन करने वाला श्लोक इत्यादि गौतमेन भगवता जिनरूप वर्णनात् । उद्धत किया गया है, वह पूज्यपाद-रचित उपलब्ध ग्रंथों में उपयुक तीनों उल्लेखोंमें गौतम नामके साथ जो अभी तक देखने में नहीं आया है। वह इस प्रकार है:- महर्षि, स्वामी और भगवत् विशेषण दिये गये हैं, उनसे उक्तं च पूज्यपादेन यही ध्वनित होता है कि ये सब श्लोक भगवान् महावीरके क्षाायकमेकमनन्त त्रिकालसवार्थयुगपदवभासम् । प्रमुख गणधर गौतम-रचित ही हैं। मकलसुखधाम सततं वंदेह केवल ज्ञानम् ॥१॥ इसके अतिरिक्त वाग्भट, धन्वन्तरि, कालिदास, पूज्यपादके उपलब्ध ग्रन्थासे यह अवश्य ही कोई शाकटायन, अमरसिंहके नामोल्लेख पूर्वक अनेक श्लोक भिन्न ग्रन्थ रहा है, जो कि आज अनुपलब्ध है। उद्धृत किये गये हैं। प्राचार्य कुन्द कुन्द स्वामी समन्तभद्र, (.)गौतम महर्षिके नामसे कई श्लोक उद्धृत हैं, पात्रकेसरी, अकलंक, कुमुदचन्द्र, प्रभाचन्द्र, पूज्यपाद, नो कि सामायिकपाठमें उपलब्ध होते हैं। 'अर्हत्' नामकी जिनसेन, सोमदेव, गुणभद्र, नेमिचन्द्र बारि अनेक प्रसिद्ध व्याख्या करते हुए श्रुतसागर लिखते हैं कि: प्राचार्योंके लगभग तीनसौसे भी ऊपर अवतरण श्रुतसागरतदुक्त श्री गौतमेन महर्षिणा सुरिने अपनी इस टीकामें दिये हैं। अनेक दृष्टियोंसे यह १- मोहादिसर्वदोपारिघातकेभ्यः सदाहतरजोभ्यः। टीका बहुत महत्वपूर्ण है। इसे शीघ्र प्रकाशमें बाकी विरहितरहस्कृतभ्यः पूजाहद्भयो नमोऽहद्भयः ॥११ प्रावश्यकता है। गौ रक्षा, कृषि और वैश्य समाज (श्रो दौलतराम 'मित्र') श्री बंकिमचन्द्र अपने 'धर्मतत्त्व' नामक प्रन्धमें लिखते नहीं हो जाते, वे उसे खलिहानसे घर और बाजार तक है कि-"पयोंमें गौ हिन्दयोंकी विशेष प्रीतिकी पात्र पहुँचा देते हैं। भारतवर्ष में लदुएका सब काम बैल ही करते गाय बैलके समान हिन्दीका परम उपकारी और है। गाय बैल मरने पर भी दधीचिकी तरह ही कोई नहीं है। गायका दृध हिन्दुओंके दूसरे जीवनके तुल्य सींग और चमड़ेसे उपकार करते हैं। मुर्ख लोग कहते है। हिन्दू मांस नहीं खाते। जो आम हम लोग खाते हैं हैं कि गाय बैल हिन्दुओंके देवता हैं। देवता नहीं, किन्तु उसमें पुष्टिकर पदार्थ बहुत कम होता है। गायका दूध न देवताके समान उपकार करते हैं। वृष्टि देवता इन्द्र हमारा मिलनेसे वह अभाव पूरा नहीं होता। हम केवल गायका जितना उपकार करते हैं, गाय बैल उससे अधिक टपकार दूध पीकर ही नहीं पलते हैं, बल्कि जिस प्रख पर हमारा करते हैं। यदि इन्द्र पूजनीय है तो गाय बैल भी है। यदि जीवन है उसकी खेती बैलसे होती है। अतः बैल भी किसी कारण वश भारत वर्षसे अचानक गोवंशका लोप हमारे अन्नदाता हैं। बैल केवल प्रश्न उपजाकर ही अलग होजाय तो निःसन्देह हिन्दू जातिका भी लोप होजायगा।

Loading...

Page Navigation
1 ... 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484