Book Title: Anekant 1940 08
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 6
________________ अनेकान्त [श्रावण, वीर निर्वाण सं०२४६६ हो गया था और जिनके चरण धोए जलके स्पर्श से एक समय लोहा भी सोना बन गया था, वे श्रीपज्य मुनि जयवन्त हों - अपने गुणोंसे लोक ह्रदयोंकी वशीभूत करें 1. कवीनां तीर्थ कृकः कित। तत्र वर्ण्यते । विदुषां वाङ्मलध्वंसि तीर्थे यस्य वचोमयम् ॥ --मादपुर जिनका वाङ्मय - शब्दशास्त्ररूपी व्याकरण - तीर्थ विद्वानोंके वचनमलको नष्ट करने वाला है, देवनन्दी कवियोंके -- नूतन संदर्भ रचने वालोंके - - तीर्थंकर हैं, उनके विषय में और अधिक क्या कहा जाय !चिन्त्यमहिमा देवः सोऽभिवन्द्यो हितैषिणा । पार्श्वनाथच रिते, वादिराजः शब्दाच येन सिद्धयन्ति साधुत्वं प्रतिलम्भिताः ॥ जिनके द्वारा -- जिनके व्याकरणशास्त्रको लेकर --शब्द भले प्रकार सिद्ध होते हैं, वे देवनन्दी श्र महिमायुक्त देव हैं और अपना हित चाहने वालोंके द्वारा सदा वन्दना किये जाने के योग्य हैं। पूज्यपादः सदा पूज्यपादः पूज्यः पुनातु माम् । व्याकरणार्णवो येन तीर्णो विस्तीर्ण सद्गुणः ॥ - पाण्डवपुराणे, शुभचन्द्रः जो पूज्योंके द्वारा भी सदा पूज्यपाद हैं, व्याकरण-समुद्रको तिर गये हैं और विस्तृत सद्गुणों के भाव हैं, वे श्री पूज्यपाद आचार्य मुझे सदा पवित्र करो -- नित्य ही हृदयमें स्थित होकर पापोंसे मेरी रक्षा करो। स्पा कुर्वन्ति यद्वाचः काय वाक्-चित्तसंभवम् । कलंकमंगिनां सोऽयं देवनन्दी नमस्यते ॥ - ज्ञानार्णवे, श्रीशुभचन्द्रः • जिनके वचन प्राणियों के काय, वाक्य और मनः सम्बंधी दोषोंको दूर कर देते हैं-- अर्थात् जिनके वैद्यक शास्त्र के सम्यक प्रयोगसे शरीरके, व्याकरणशास्त्रसे वचन के और समाधिशास्त्र से मनके विकार है -- उन श्रीदेवनन्दी श्राचार्यको नमस्कार है । दूर ही ज ११८ न्यासं जैनेन्द्र संज्ञं सकलबुधनुतं परिणनीयस्य भूयो - न्यासं शब्दावतारं मनुजततिहितं वैद्यशास्त्रं च कृत्वा । यस्तत्वार्थस्य टीकां व्यरचयदिह भात्यसौ पूज्यपाद स्वामी भूपालवन्द्यः स्वपरहितवचः पूर्ण इग्बोधवृत्तः ॥ - नगरताल्लुक शि० लेख०नं० ४६ जिन्होंने सकल बुधजनोंसे स्तुत 'जैनेन्द्र' नामका न्यास (व्याकरण) बनाया, पुनः पाणिनीय व्याकरण पर 'शब्दावतार' नामका न्यास लिखा तथा मनुज-समाज के लिये दितरूप वैद्यक शास्त्र की रचना की और इन के बाद तत्वार्थ सूत्र टीका ( सर्वार्थसिद्धि ) का निर्माण किया, वे राजाओंसे वन्दनीय अथवा दुर्विनीत राजासे पूजितत--स्वपर हितकारी वचनों (ग्रन्थों) के प्रणेता और दर्शन • ज्ञान चारित्र से परिपूर्ण श्रीपूज्यपाद स्वाना ( अपने गुणोंसे ) खूब ही प्रकाशमान हैं । जैनेन्द्रं निजशब्दभागमतुलं सर्वार्थद्धिः परा सिद्धान्ते निपुणत्वमुद्घ कवितां जैनाभिषेकः स्वकः । छन्दः सूक्ष्मधियं समाधिशतकं स्वास्थ्यं यदीयं विदा माख्यातीस पूज्यपादमुनिपः पूज्यो मुनीनां गणै ॥ - श्रवणबेलगोल शि० लेख नं० ४० जिनका 'जैनेन्द्र' (व्याकरण) शब्दशास्त्र में अपने श्रतुलित भागको 'सवार्थसिद्धि' ( तत्त्वार्यटीका ) सिद्धान्तमें परम निपुणताको, 'जैनाभिषेक' ऊँचे दर्जेकी कविताको, छन्दःशास्त्र बुद्धि की सूक्ष्मता ( रचनाचातुर्य ) को और 'समाधिशतक' जिनकी स्वात्मस्थिति ( स्थितप्रज्ञता ) को संसार में विद्वानों पर प्रकट करता है वे 'प मुनीन्द्र मुनियोंके गणोंसे पूजनीय हैं।

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