Book Title: Anekant 1940 08 Author(s): Jugalkishor Mukhtar Publisher: Veer Seva Mandir Trust View full book textPage 5
________________ re RWANA समuruRJHAR 24 ITIMUR नीति-विरोध-ध्वंसी लोक-व्यवहार-वर्तकः सम्यक् । परमागमस्य बीजं भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्तः ॥ सम्पादन-स्थान-वीरसेवामन्दिर (समन्तभद्राश्रम), सरसावा, जि. सहारनपुर । वर्ष ३ प्रकाशन-स्थान-कनॉट सर्कस, पो० बो० नं० ४८, न्य देहली किरण १० श्रावण-पूर्णिमा, वीरनिर्वाण सं०२४६६, विक्रम सं० १९६७ : देवनन्दि-पूज्यपाद-स्मरण . यो देवनन्दि-प्रथमाभिधानो बुद्ध था महत्या स जिनेन्द्रबुद्धिः । श्रीपूज्यपादोऽजनि देवताभिर्यत्पूजितं पादयुगं यदीयं ॥ -श्रवणवेल्गोल शि०नं० ४० जिनका प्रथम नाम-गुरुद्वारा दिया हुआ दीक्षानाम-'देवनन्दी' था, जो बादको बुद्धिकी प्रकर्षता के कारण 'जिनेन्द्रबुद्धि' कहलाए , वे प्राचार्यश्री 'पूज्यपाद' नामसे इसलिये प्रसिद्ध हुए हैं कि उनके चरणोंकी देवताओं ने आकर पूजा की थी। श्रा पूज्य पादोद्धतधर्मराज्यस्ततः सुराधीश्वरपूज्यपादः । यदीयवैदुष्यगुणानिदानी वदन्ति शास्त्राणि तदुद्धृतानि ॥ धृतविश्वबुद्धिरयमत्र योगिभिः कृतकृत्यभावमविभ्रदुच्चकैः । जिनवद्वभूव यदनङ्ग चापहृत स जिनेन्द्रबुद्धिरिति साधुवर्णितः ।।- श्रवणबेल्गोल शि० ले०नं० १०८ श्री पज्यपादने धर्मराज्यका उद्धार किया था-लोकमें धर्मकी पुनः प्रतिष्ठा की थी-इसीसे आप देवताअोंके अधिपति-द्वारा पूजे गये और 'पूज्यपाद' कहलाये । अापके विद्याविशिष्ट गुणोंको श्राज भी आपके द्वारा उद्धार पाये हुए-रचे हुए-शास्त्र बतला रहे हैं-उनका खला गान कर रहे हैं। आप जिनेन्द्रकी तरह विश्वबुद्धि के धारक समस्त शास्त्रविषयों के पारंगत थे और कामदेवको जीतने वाले थे, इसीसे आपमें ऊँचे दर्जेके कृतकृत्यभावको धारण करने वाले योगियोंने अापको ठीक ही 'जिनेन्द्रबुद्धि' कहा है।.. श्रीपूज्यपादमुनिरप्रतिमौषधर्द्धि जर्जीयाद्विदेहजिनदर्शनपूतगात्रः । यत्पादधीतजल-संस्पशप्रभावात् कालायसं किल तदा कनकीचकार ।। --श्र०शि० नं० १०८ जो अद्वितीय औषध-ऋद्धि के धारक थे, विदेह-स्थित जिनेन्द्र भगवान के दर्शनसे जिनका गात्र पवित्रPage Navigation
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