Book Title: Anant Sakti Ka Punj Namokar Mahamantra
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 10
________________ (८) होता है और फिर श्रवणगोचर बनता है । श्रवणगोचर शब्द भी कुछ इतने सूक्ष्म होते हैं जिन्हें उच्चारणकर्त्ता स्वयं ही सुन पाता है, दूसरे नहीं । कुछ शब्द ऐसे होते हैं जिन्हें दूसरे भी सुन सकते हैं । नाभि से उत्पन्न स्वर की कंठ, तालु, जिह्वामूल तक की यात्रा, इन क्षेत्रों में प्रकंपन उत्पन्न करती है और ये प्रकंपन कई हजार प्रति सैकिण्ड की संख्या में होते हैं । स्वरध्वनि की गहराई के साथ-साथ प्रकंपनों की संख्या भी बढ़ती जाती है, और यदि ये स्वयं श्रव्य की सीमा तक ही रहें तो इन प्रकम्पनों से शरीर में ऊर्जा का स्फोट होता है, जो अभीष्ट फल प्राप्ति में शक्तिशाली माध्यम के रूप में कार्यकर होता है । इसीलिए ग्रन्थों में मौनजप, मानसजप या उपांशुजप का अधिक फल बताया है, इससे इष्ट सिद्धि शीघ्र होती है ।

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