Book Title: Anant Sakti Ka Punj Namokar Mahamantra
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 20
________________ (१८) आती हैं, जैसे चुम्बक की ओर लोहकण । । उदाहरण के लिए इस महामंत्र के किसी भी एक पद को ले लीजिए । प्रथम पद 'नमो अरिहंताणं' ही लें। इस सम्पूर्ण पद का जप/ध्यान जब आज्ञाचक्र (ललाट- भूमध्य) पर किया जाता है तो जैसे-जैसे जप की गहराई बढ़ती है, तन्मयता गहरी होती है; वैसे-वैसे स्वतः मस्तिष्कीय तथा भूमध्य में अवस्थित कोशिका तंत्र में कम्पन होने लगता है और शनैः शनैः उन कम्पनों की गति तीव्र से तीव्रतर होती जाती है, परिणामस्वरूप मानस चक्षुओं के समक्ष श्वेत वर्णीय पटल निर्मित हो जाता है, इस पद के चमकीले अक्षरों सहित । ___श्वेत वर्ण शांति और शुद्धता का प्रतीक है । इससे मन की उज्ज्वलता प्रमाणित होती है । साधक की मनःस्थिति जितनी

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