Book Title: Anant Sakti Ka Punj Namokar Mahamantra
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 26
________________ (२४) गया । मजबूरन अमेरिकन सरकार को उन्हें वापिस बुलाना पड़ा । अपने परिवारीजनों से मिलने के बाद उनके शरीर और मन का द्वैध मिट गया और वे बिना किसी विशेष उपचार के ही स्वस्थ हो गये। जैन दर्शन की भी मान्यता ऐसी ही है । रोग आदि की उत्पत्ति का कारण वेदनीय (असातावेदनीय) कर्म माना गया है । सीधी और सरल शब्दावली में रोग की उत्पत्ति कार्मण शरीर में होती है, उससे तैजस शरीर प्रभावित होता है और अभिव्यक्ति औदारिक अथवा स्थूल शरीर में होती है, रोग औदारिक शरीर में दिखाई देता है। इस प्रकार रोग आदि का मूल आध्यात्मिक दोष-राग-द्वेष, कषाय आदि कार्मण शरीर (कम) होता है। महामंत्र नवकार की साधना से सर्वप्रथम कार्मण शरीर विशुद्ध होता है, अशुभ कर्मों

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