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(३२)
साधक उसमें लवलीन हो जायेगा । और उस आनन्द से पुलकता रहेगा किन्तु शब्दों से बता नहीं सकेगा ।
शब्द पौद्गलिक हैं । पुद्गल हैं - इसलिए इनमें वर्ण भी है, गंध भी है, रस भी है और स्पर्श भी है तथा उनका निश्चित आकार संस्थान भी है । लेकिन सामान्य स्थिति में अथवा शब्दों के उच्चारण मात्र से न वर्ण सामने आता है, न गंध की और न रस की ही अनुभूति होती है । किन्तु भावना का योग पाते ही वे अजीव वर्ण सजीव से हो उठते हैं, उनमें रूप, रस, वर्ण आदि की अभिव्यक्ति हो जाती है, ये गुण जो छिपे हुए थे, अव्यक्त थे; वे व्यक्त हो जाते हैं, प्रगट हो जाते हैं, ठीक उसी तरह जैसे पारा औषधियों के रस की भावना (वैद्यक ग्रन्थों के अनुसार) का योग पाकर पारद-रसायन बन जाता है - स्वास्थ्य, बल,
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