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ध्यान काले, कस्तूरी जैसे चमकदार काले रंग में करने का विधान है। __इसके भी ४ सोपान हैं । प्रथम पद के अक्षरों का ध्यान,दूसरा संपूर्ण पद का ध्यान, तीसरा पद के अर्थ का ध्यान और चौथा सोपान है-साधुजी के गुणों का ध्यान । पांचवे पद में प्रयुक्त अक्षर ९ हैं । अंकशास्त्र अथवा संख्याशास्त्र की दृष्टि से ९ की संख्या हीयमान नहीं है, चाहे जिस संख्या से ९ की संख्या को गुणा किया जाय गुणनफल का योग सदा ही ९ रहता है । इसका संकेतात्मक अभिप्राय यह है कि साधुजी के गुण कभी हीयमान नहीं होते अथवा साधु कभी गुणों से हीन नहीं होते । उनके गुण गुणात्मक रूप(Geometricalprogression) में बढ़ते हैं, दूसरे शब्दों में निरंतर विकसित होकर उत्कर्ष को प्राप्त होते हैं ।
परम्परा से यह धारणा चली आ रही है