Book Title: Anant Sakti Ka Punj Namokar Mahamantra
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 55
________________ (५३) आचार्य का मत है, कठोर नियम नहीं । यह साधक की क्षमता है कि वह पाँचों पदों का जाप ३ श्वासोच्छ्वास में करे या ५ श्वासोच्छ्रास में । लेकिन इतना आवश्यक है कि एक पद का जाप एक श्वासोच्छ्वास में पूराहो जाय । पद के बीच में श्वास न टूट जाय । श्वास जितना लम्बा ले सकें उतना ही अच्छा है । दीर्घ श्वास से एकाग्रता, शान्ति और आयु, आरोग्य की वृद्धि होती है । दूसरी आवश्यक बात है प्रत्येक श्वास ताल - लयमय हो, सम हो, इनमें समान और एक-सा समय लगे । श्वासोच्छ्वास का सम्बन्ध ध्यानावस्था तक रहता है; जबकि ध्यानावस्था में उच्चारण की अवस्थिति नहीं रहती । ध्यान के लिए श्वासोच्छ्वास का सम रहना अनिवार्य है । उखड़ी हुई अथवा

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