Book Title: Anant Sakti Ka Punj Namokar Mahamantra
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 53
________________ (५१) भी आसन अपना सकता है किन्तु यह आवश्यक है कि उस आसन से वह सुखपूर्वक अधिक से अधिक समय तक स्थिर रह सके। आसन की अस्थिरता ध्यान में विक्षेप उत्पन्न करती है । अस्थिर आसन से, बार-बार आसन बदलने से, शरीर के हिलने-डुलने से बार-बार ध्यान टूट जाता है, उसकी एकतानता नहीं रहती और एकतानता के अभाव में ध्यान में साधक को जो आनन्द की अनुभूति होनी चाहिए, वह नहीं हो पाती; ध्यान की सम्पूर्ण प्रक्रिया फीकी और नीरस हो जाती है । उच्चारण- जपसाधना श्रव्य की जाए अथवा अश्रव्य; किन्तु महामंत्र के अक्षरों, व्यंजनों और स्वरों का शुद्ध रूप में उच्चारण करना आवश्यक है । जिस स्वर व्यंजन पर जितना बल देना आवश्यक है, उतना ही दिया जाय, न कम न अधिक । साथ ही ·

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