Book Title: Anant Sakti Ka Punj Namokar Mahamantra
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 59
________________ (५७) (१) इसकी साधना से भावनाओं की विशुद्धि होती है । (२) आत्मिक शांति प्राप्त होती है । (३) आध्यात्मिकदोष - क्रोध, मान, माया, लोभ आदि उपशांत होते हैं । (४) आत्मा अपनी अनन्त शक्तियोंदर्शन, ज्ञान, वीर्य, सुख आदि से परिचित होता है, इन शक्तियों पर उसका विश्वास दृढ़ होता है । . (५) असीम सत्ता तथा असीमता से सम्पर्क होता है । (६) अनन्त की अनुभूति होती है । (७) अहंकार - ममकार का विसर्जन होता है। साधक की अपने और परायेपन की द्वैध भावना क्षीण होती है । मानसिक फल इस प्रकार हैं (१) संकल्प-विकल्पों की शान्ति ।

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