Book Title: Anant Sakti Ka Punj Namokar Mahamantra
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 29
________________ (२७) साधना प्रक्रिया में महत्वपूर्ण स्थान हैवर्णों, अक्षरों, व्यंजनों के उचित मात्रा में ह्रस्व, लघु, दीर्घ, प्लुत-इन घोष-ध्वनियों के उच्चारण का तथा यह ज्ञान भी अपेक्षित है कि किसी विशिष्ट स्वर आदि के उच्चारण स्थल (केन्द्र) शरीर के किस भाग में अवस्थित हैं । साधक को चाहिए कि उन्हीं स्थानों से स्वर-ध्वनि का प्रारम्भ करे । इसके साथ ही मंत्र के अर्थ का ज्ञान भी होना चाहिए, इससे साधक की निष्ठा में अभीप्सित वृद्धि होती है । __ अनेक कथाओं में ऐसा भी पढ़ने को मिलता है और ऐसा प्रत्यक्ष अनुभव भी है कि ऐसे अनपढ़ तथा असभ्य कहे जाने वाले लोगों को जो नवकार मंत्र का अर्थ बिल्कुल भी नहीं जानते थे, सिर्फ उन्होंने मंत्र को रट लिया और श्रद्धा-निष्ठा पूर्वक जप करने से उन्हें चमत्कारी फल की प्राप्ति हुई ।

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