Book Title: Anand Ratnakar Anand Lahri Tippani Sahit Author(s): Suryodaysagar Gani Publisher: Agamoddharak Jain Granthmala View full book textPage 8
________________ जे कई क्षतिमो रही होय, ते सुज्ञ पाठको हंसक्षोरन्याये उदार भावे क्षतव्य गणी प्रस्तुत ग्रंथना पठन-पाठन-वाचन-अभ्यास आदि द्वारा पू. आगमोद्धारक श्रीनी अप्रतिम बहुमुखी प्रतिभापूर्वक आदेखायेल विशिष्ट ग्रंथरत्नोना रसास्वादना भागी बनी आत्मकल्याणना पंथे मंगळयात्रा धपावे ए कल्याण कामना. दलालवाडो, कपडवंज (खेडा) । निवेदक वी. नि. सं. २४९८ रमणलाल जेचंदभाई वि. सं २०२८ मुख्य कार्यवाहक चै. व. ९. श्री आगमोद्धारक जैन ग्रंथमाळा मु....मु....क्षु....भा....व....नां सा....ध....नो.... गुणानुराग, स्वदोषदर्शन, ज्ञानीनी निश्रा कर्तव्यनिष्ठा थी मुमुक्षुभावाकेलवाय छे. -पू. आगमोद्धारकरी -Page Navigation
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