Book Title: Ahimsa Vani 1952 06 07 Varsh 02 Ank 03 04
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Jain Mission Aliganj

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Page 33
________________ *श्री अखिल विश्व जैन मिशन के प्रथमाधिवेशन इन्दौर का भाषण* २५ शुक्र को जाकर गीता और कुरान समाज में भी होती हैं। वे मांसाहार सुनाते थे । पंडितजी और मौलवीजी के त्यागी होते हैं, ब्रह्मचर्य से रहते अलग-अलग से ही उपदेश देते थे हैं । कालिज में पढ़ने वाली एक क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं उन्हें लड़की को विराग हुआ और उसने छूत न लग जाय । वे कोढ़ियों से यह “नन" बनने का निश्चय कर लिया। कह सन्तोष दिलाने का प्रयत्न करते ईसाई साध्वी को 'नन' कहते है। कि यह बीमारी उनके पिछले जन्मों- ईसाइयों में दीक्षाकी तीन श्रेणियां का फल है, अब भगवान का भजन होती हैं। पहली एक वर्ष की होती करो जिससे स्वर्ग मिलेगा। किन्तु है, दूसरी तीन वर्ष की और तीसरी ईसाइयों का तरीका निराला था। अजीवन सेवा करने की। उस बहन ईसाई मिशनरी कोढ़ियों के लिये. ने तीसरी दीक्षा ली। तपस्या और फल-फूल लाते, दूसरी अावश्यक चीजें ब्रह्मचर्य के साथ-साथ वे लोग सेवाभी लाकर उन्हें देते और उनके पास कार्य का भी निश्चय करते हैं। धर्म जाकर अत्यन्त सहानुभूतिसे उनका प्रचार करते समय भी किसी-न-किसी उत्साह बढ़ाते । कहते अब तुम्हारी सेवा का काम हाथ में लेते हैं। तबियत ठीक होरही है, जिस बातकी अपने कालिज जीवन में उसने हिन्दुजरूरत हो -कहो। इस तरह वे प्रेम स्तान सम्बन्धी जानकारी प्राप्त की की बातें करते। थी। वहां जो जानकारी कराई जाती है उसमें प्रायः यही लिखा रहता है . परिणाम यह हुआ कि पिछले वर्षों की अपेक्षा इस वर्ष और अधिक कि हिन्दुस्तानी जंगली, मूर्ख, दुखी ईसाई बन गये। कोढ़ियों पर हिन्दू होते हैं। उनसे हिन्दुस्तान में रहकर सेवा करने का निश्चय किया और और मुस्लिम के बर्ताव की प्रतिक्रिया __ अमेरिकन मिशनरियों की ओर से इसके पहले नहीं हुई थी । जब मद्रास प्रान्त में रामचंद्रपुरम् में जो कोढ़ियोंने देखा कि ये लोग केवल थोथी बातें करते हैं, इनमें दया आदि संस्था चल रही थी उसमें जाकर काम करने इच्छा व्यक्त की । उसे कुछ नहीं है तो उनका ईसाई बनना हिन्दुस्तान की भाषाओं का तथाभूगोल स्वाभाविक था। का भी ज्ञान नहीं था। उसने लिख ईसाई मिशनरी सेवा का कार्य दिया कि मैं १७ ता० बंबई पहुचूँगी कितनी तन्मयतासे करते हैं अतः और उसी दिन रात को गांव पहँच उनका उदाहरण लीजिये। कर दूसरे दिन चार्ज ले लंगी । २. जैसे भारतीय समाज में साधु लेकिन उस दिन बंबई पहुँचने पर साध्वियां होती हैं, वैसे ही ईसाई पता चला कि मद्रास तो दो दिन का

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