Book Title: Ahimsa Vani 1952 06 07 Varsh 02 Ank 03 04
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Jain Mission Aliganj

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Page 79
________________ * रिपोर्ट तृतीय वर्ष श्री अखिल विश्व जैन मिशन * ६७ ने केन्द्र भवन बनाने के लिये भूमि में वह ट्रेक भी पात्रों को भेंट करते का दान देना स्वीकार किया है। है । और जहाँ अवसर मिलता है. जिस समय श्री वुड महोदय अपना वहाँ भाषण भी दे देते हैं । किन्तु दानपत्र (Deed of Gift) भेज प्लेटफार्म से नियमित प्रचार तभी देंगे, उस समय श्री स्व० रा०व० जे० हो सकता है जब अपना केन्द्र हो एल० जैनी ट्रस्ट से भी भवन-निर्माण और मैक्के सा० को आजीविका की कार्य में आर्थिक सहायता प्राप्त होगी। चिन्ता से मुक्त कर दिया जावे । यह आश्वासन ट्रस्ट के सुयोग्य मंत्री जरमनी में श्री लूथर वेन्डेल सा० ने श्रीमान् बाबू जौहरीलाल जी मित्तल और अमेरिका में श्री ज्ञानेन्द्र जी ने सा० ने दिया है। हम मित्तल सा० भाषण दिये थे। पश्चिमी अफ्रीका के अत्यन्त आभारी हैं। एवं उपरोक्त में श्री वुड ने कई मीटिंग करके दातारों की दान शीलता की प्रशंसा अहिंसाधर्म पर भाषण दिये, जिस करते हुये उनका आभार मानते हैं। से २० व्यक्तियों ने शाकाहार करना यदि अन्य धनिक भाई इनका अनु- स्वीकार किया। करण करें तो लन्दन में भी केन्द्र भवन १३. भारत में भी प्रेस और बन जावे और जरमनी की जन प्लेटफार्म से प्रचार किया गया लायब्रेरी का अपना भवन हो जावे ! १२. विदेशों में प्लेटफार्म से पुस्तकालय खोले गए। प्रचार। . यद्यपि भारत में भी मिशन का यद्यपि अर्थभाव में मिशन मि० एक भी पेड प्रचारक नहीं है तो भी मैक्के को अजीविकोपार्जन की चिंता अवैतनिक स्वेच्छा से सेवारत युवक से मुक्त करके प्रचार कार्य में निरत संयोजक महोदयों ने प्रचार किया; न कर सकी; फिर भी मैक्के सा० के जिसकी तालिका निम्न प्रकार है:अहिंसक जीवन व्यवहार का प्रभाव (१) पटना में प्रो० अनन्तलोगों पर पड़ा। डॉ० टाल्वोट, कवि प्रसाद जी जैन मिशन कार्य में सदा मैन्सेल, श्री हडसन आदि बंधुगण जागरूक रहे और प्रचार किया । जैन जीवन का अभ्यास कर रहे हैं। आपके ही सुझाव पर बनारस विश्व उनका समाज में यह अहिंसामय विद्यालय के उदीयमान स्नातक जीवन निराला है; इसलिये हर किसी बाबू श्री प्रकाश जी जैन ने बारा, - का ध्यान उनकी ओर आकृष्ट होता गया आदि स्थानों में जाकर प्रचार है। लोग उनसे चरचा करते हैं और किया। कोई कोई अहिंसक जीवन विताने (२) झूमरी तलैया में श्री पं० का प्रयत्न करता है। इन चरचाओं गोविन्दराय जी शास्त्री जैन और

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