Book Title: Ahimsa Vani 1952 06 07 Varsh 02 Ank 03 04
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Jain Mission Aliganj

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Page 80
________________ * अहिंसा-वाणी * अजैन जनता में अहिंसा भाव जागृत है, उसे भुलाया नहीं जा सकता। करने के लिये प्रयत्नशील रहे। इन्दौर में मिशन का जो सफल अघि (३) नवाई-(जयपुर) में श्री वेशन हुआ, वह आप लोगों की लगन पं० राजकुमार जी शास्त्री, चेयरमैन का द्योतक है। आप ही की प्रेरणा म्यु० बोर्ड ने मीटिंग करके प्रचार से हमारे श्वे. जैन बन्धुगण सेठ किया और देहात में घूम कर भी मोहन भाई जी जोरी, मङ्गलदास जी अहिंसा का महत्व बताया । अजैन सेठ, एवं इन्दौर के प्रमुख रईस भाइयों को भी अपने प्रचार में योग श्रीमान् दानवीर रा०व० सेठ राज देने के लिए आकृष्ट किया। कुमार सिंह जी प्रभृति सज्जनों का (४) जयपुर-में श्री हर्षचन्द जी सहयोग मिशन को प्राप्त हुआ ? उन्हीं ठोल्या ने कुछ प्रचार किया । यहाँ के कारण अधिवेशन विशेष सफल काफी प्रचार हो सकता है। हुआ। (५) रांची-(विहार) में श्री (६) सिरोंज (राज.) के उत्साही रत्नेशकुमार जी और श्री गुलाबचंद कार्यकर्ता श्री निर्मल कुमार जी ने जी ने प्रचार किया और मीटिग की। ग्रामों में घूम-घूम कर प्रचार किया देहात के लोगों से मांस-मदिरा और लोगों से मद्य-मांस का त्याग छुड़ाया। कराया। श्री जयकुमार जी वैद्य ने भी (६) उज्जैन में श्री पं० सत्य- सहयोग प्रदान किया। श्री स्वतंत्र न्धरकुमार जी सेठी ने प्रचार किया जी के सभापतित्व में एक आम सभा और घूम कर पुरातत्व का पता करके प्रचार किया गया । जैन लाय. लगाया एवं गावों में प्रचार किया । ब्रेरी चालू की गई। (७) मन्दसौर में श्री पं० भगवान (१०) दिल्ली में श्री पं० सुमेर दास जी एवं सेठ लक्ष्मी लाल जी चंद जी जैन शास्त्री ने प्रचार किया। सेठी ने प्रचार किया। जो विदेशी विद्वान जैसे डॉ० ग्लास्नय (E) इन्दौर में श्री प्रकाशचन्द्र आदि आए उनसे चरचा की और जी टोंग्या के अपूर्व उत्साह से मध्य साहित्य भेंट किया। नई दिल्ली में भारत मिशन केन्द्र का संगठन जैन बुक एजेन्सी के मालिक श्री एस० हुश्रा । श्री ईश्वर चंद जी बड़जात्या पी० जैन ने बड़े उत्साह से लोगों के सहयोग से आपने इन्दौर एवं को मिशन की ओर आकृष्ट किया। आस पास के स्थानों में प्रचार अपील छपवाकर वितरण की और किया । आपके पिता जी श्रीमान् वाइस एवं अ० वा० के ग्राहक बनाये। सेठ गुलाब चंद्र जी टोंग्या सा० ने हंगोरियन ट्रेड कमिश्नर प्रभृति महानुमिशन कार्य में जो सहयोग दिया भावों की अहिंसा-विषयक शंकाओं

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