Book Title: Ahimsa Vani 1952 06 07 Varsh 02 Ank 03 04
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Jain Mission Aliganj

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Page 43
________________ * कर्म-सिद्धांत और मानव एकता * अवस्था के दो तरफा कारण है। इसलिए एक दूसरे से सम्बन्धित द्रव्याश्राव के कारणों में बहुत सी हैं। वे दो बातें, जैसे ऊपर बता चुके बाह्य-शारीरिक और मानसिक हैं, उनकी मौलिक सीमित दशा क्रियाओं से उत्पन्न व्यामोह हैं जो कि अर्थात् आत्मस्वभाव का परिमित आत्मा को पतितावस्था की ओर ले होकर सुखमई दशा से वञ्चित हो जाते है और साथ ही साथ आत्मा जाना है और उस सीमित दशा के को अपनी निज की दशा से च्युत वाह्य कारण भी सबके एक समान करके विक्षिप्त करते हैं। हैं। यह दोनों मानवता की एकता उस सबका परिणाम यह होता सूचित करते हैं । अब यहां पर हम है कि बहुत ही सूक्ष्म और अदृश्य एक तीसरे तथ्य की ओर भी संकेत पुद्गल परमाणु जिनको जैन दर्शन में करते हैं जो मानव एकता का पोषक कर्म पुद्गल कहा गया है, अत्मा से है । दुखी मानवता इस तथ्य के बंध जाते हैं। ये कर्म परमाणु यद्यपि आलोक में एकता का अनुभव समय समय पर क्षय होते रहते हैं किए बिना नहीं रह सकती । यह तथापि नये पुद्गल परमाणु शीघ्र ही तथ्य दुख-दर्द से मानव को मुक्ति उनका स्थान ले लेते हैं और कर्मों मिलने के उपाय में अन्तनिहित बंधन इस प्रकार आत्मा से इन है। और यह उपाय सभी मानवों के का बंधन बना रहता है जो आत्मा लिए केवल एक है। सुग्व की प्राप्ति को मुक्त नहीं होने देता और उसकी इस बात पर निर्भर है कि मानव के शक्तियों को परिमित कर देता है। भीतर जो दुखदायक वाह्य कारणों इस प्रकार मानव की एकता संबंधी का सम्बन्ध हो गया है, उन सम्बप्रकरण में यह दूसरा तथ्य है। केवल न्धों-बन्धनों को तोड़कर बाहर फेंक यह बात नहीं है कि निरंतर बने रहने दिया जावे । उन बन्धनों ने ही तो वाले संसार के क्लेश और परिताप मानव को अपने आनन्दमयी स्वाही जीवोंको संक्लेषित करते हैं और भाव से वञ्जित कर दिया है। उस उनको सीमित बनाते हैं, बल्कि इन बंधन को चाहे वैदिक ब्राह्मण 'अदृष्ट' दुर्भाग्यशाली जीवों की तकलीफ कहे, जैन 'कर्मबंध' कहे और ईसाई और दुख का एक मात्र कारण वाह्य 'गुनाह' (Sin) कहे; इससे कोई विकारों और योगों का परिणमन हानि नहीं ! हानि तो उस वाह्य कर्म पुद्गल से है जिसके बंधजन्य प्रभाव इस प्रकार हम पाते हैं कि यथार्थ के कारण, मानव अपने स्वभाव को में इस लोक के सभी मानव दो बातों खो बैठा है । इस बंध को नष्ट करके में एक ही स्थिति में एक से हैं- मानव-मानव मुक्ति दशा में अपने

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