Book Title: Ahimsa Vani 1952 06 07 Varsh 02 Ank 03 04
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Jain Mission Aliganj

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Page 54
________________ ४२ * अहिंसा-वाणी* से फिर ले आए और उसे अपने इसकी पुष्टि साहित्यिक प्रमाणों से राज्य में प्रतिष्ठापित किया । इस भी होती है, जिन्हें ब्यूलर, स्मिथ उल्लेख से पता चलता है कि तीर्थङ्कर आदि पाश्चात्य विद्वानों ने स्वीकार प्रतिमाओं का निर्माण महापद्मनन्द किया है। सबसे पहले ब्यूलर ने के भी पहले प्रारम्भ हो चुका था। जिन प्रभ-रचित, 'तीर्थकल्प' नामक मथुरा के प्रसिद्ध कंकाली टीले की ग्रन्थ की ओर लोगों का ध्यान आकखुदाई में मिली हुई बस्तुओं में एक र्षित किया, जिसमें प्राचीन प्रमाणों के तीर्थकर मूर्ति की भग्न चौकी भी है, आधार पर मथुरा के देवनिर्मित जिस पर ई० दूसरी शताब्दी का एक स्तूप की नींव पड़ने तथा उसकी मरब्रासी लेख उत्कीर्ण है। इसमें लिदा म्मत का वर्णन है। इस ग्रन्थ के है कि शक सम्बत् ७६ (१५७ ई०) में अनुसार यह स्तूप पहले स्वर्ण का मुनिसुव्रतनाथ को इस प्रतिमा को था और उस पर मूल्यवान् पत्थर जड़े 'देवताओं के द्वारा निर्मित बौद्ध हुए थे । सातवें तीर्थंकर सुपाश्वनाथ स्तूप' में प्रतिष्ठापित किया गया। की प्रतिष्ठा में इस स्तूप को कुबेरा इससे पता चलता है कि ईसवीं दूसरी देवी ने बनवाया था। २३ वें जिन शती मे मथुरा के इस प्राचीन जैन पार्श्वनाथ के समय में इस स्तूप स्तूप का आकार-प्रकार ऐसा भव्य को चारों ओर ईटों से आवेष्टित तथा उसकी कला इतनी दिव्य थी किया गया और उसके बाहर एक कि मथुरा के कुषाण कालीन कला पाषाण-मन्दिर का भी निर्माण किया मर्मज्ञों को भी उसे देखकर चकित गया। तीर्थकल्प से यह भी ज्ञात हो जाना पड़ा । लोग यह मानने होता हैं कि भगवान महावीर के लगे कि 'बौद्ध स्तूप संसार के किसी ज्ञान-प्राप्ति के तेरह सौ वर्ष बाद प्राणी की कृति न होकर देवताओं मथस के इस स्तूप की मरम्मत वप्पकी रचना होगी, इसी लिए उन्होंने भट्ट सूरि ने कराई । तदनुसार मरम्मत उसे 'देवनिर्मित' स्तूप की संज्ञा दी। का समय ईसवीं आठवीं शताब्दी के ___ उपर्युक्त लेख के मिलने के पूर्व मध्य में आता है। अतः कम से कम विद्वानों की यह धारणा थी कि भारत इस काल तक वर्तमान कंकाली टीले में सबसे पहले बौद्ध स्तूपों का निर्माण की भूमि पर उक्त स्तूप का अस्तित्व हुआ। परन्तु प्रस्तुत लेख के द्वारा रहा होगा । यद्यपि बौद्ध स्तूप के सर्व यह धारणा. भ्रांत सिद्ध हो गई है। प्रथम निर्माण की तिथि निश्चित रूप अब विद्वान यह मानने लगे हैं कि से नहीं बताई जा सकती तो भी बौद्ध स्तूपों के बनने के पहले जैन साहित्यिक उल्लेखों के आधार पर स्तूपों का निर्माण हो चुका था। इतना कहा जा सकता है कि उसका

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