Book Title: Ahimsa Vani 1952 06 07 Varsh 02 Ank 03 04
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Jain Mission Aliganj

View full book text
Previous | Next

Page 72
________________ ॐ नमः सिद्धेभ्यः रिपोर्ट तृतीय वर्ष श्री अखिल विश्व जैन मिशन । (अहिंसा प्रचार संघ) ... मंगल-भावना कवलि-पएणतो-धम्मो मंगलं । केवलि-पएणतो-धम्मो सरणं पवजामि !' 'सारे ही देश धारें जिनवर वृष को जो सदा सौख्यकारी !' १. जैन मिशन क्या है ? के सभी देशों और लोगों से हमें मानव सामाजिक प्राणी है । सम्बन्ध स्थापित करना पड़ता है। इसलिये वह लोक के जीवों के साथ युद्ध होते हैं दूर-दूर यूरुप में अथवा पारस्परिक व्यवहार सम्बन्ध स्था- सुदूर पूर्व में, परन्तु उनके प्रभाव से पित करता है। जैनाचार्यों ने हम अछूते नहीं रहते ! इधर अंग्रेजों 'परस्परोपगृहो जीवानां' सूत्र द्वारा के शासन में रहकर हम अपने-पन इस सत्य को ही घोषित किया है। को बहुत कुछ भूल गए हैं। हमारी दैनिक जीवन में मानव को न केवल भेषभूषा और आचार-विचार एवं मानव की बल्कि पशु जीवों की भी शिक्षा-दीक्षा पाश्चात्य सभ्यता के रंग सहायता लेनी पड़ती है । अपने में रंग गए हैं। उस सभ्यता के रंग पड़ोसी से तो हमारा निकट का में जो हिंसा से ओतप्रोत है जिसका सम्बन्ध होता ही है, परन्तु अज्ञात पथ प्रदर्शन खून की प्यासी रणचंडी भाव से हमारा सम्बन्ध सात समुद्र कर रही है !: किन्तु आज पाश्चात्य पार के उन गोरे और काले लोगों से लोक इस हिंसा से घबड़ा गया है, भी होता है जो हमारे लिये दैनिक उसकी आत्मा कांप उठी है। वहाँ के जीवन की अनेक वस्तुयें बनाकर शासक नहीं, बल्कि जनता शान्ति भेजते और अपने लिए मंगाते हैं। चाहती है । वह भारत की ओर आशा अतएव हम अपने दैनिक जीवन के भरे नेत्रों से देख रही है। हमारा सम्पर्कों में न केवल अपने ही समुदाय कर्तव्य हो जाता है कि हम अपनी के लोगों के सम्पर्क में आते हैं, बल्कि 'आत्मा' को पाने के लिये और लोक आज विज्ञान के इस युग में विश्व को शान्ति का मार्ग बताने के लिये

Loading...

Page Navigation
1 ... 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98