Book Title: Ahimsa Vani 1952 06 07 Varsh 02 Ank 03 04
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Jain Mission Aliganj

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Page 71
________________ * इन्दौर-प्रवास के संस्मरण * ५४ अधिवेशन में कोई अपील फंड की रथयात्राओं में हम लोग सम्मिके लिये नहीं की गई । वयोवृद्ध काप- लित हुये। डॉ० वैल्यी को हाथी पर ड़िया जीने कई दफा यह सुझाव बैठा दिया था, जिससे सब लोग रखा कि अपील की जावे, परन्तु उसे देखते थे। स्थानीय कार्यकर्ता ने उसका भार इन्दौर के सब भाइयों से विदा अपने ऊपर ले लिया । अतः अब होकर हम प्रो० श्यामसिंह जी, डॉ. उनका कर्तव्य है कि वे मिशन को सक्सेना और पं० सुमेरचन्द्र जी के अर्थसंकट से मुक्त करने का उद्योग साथ उज्जैन होते हुये वापस घर करें। __आये । उज्जैन में डॉ० नाग का सार ___ इन्दौर में सेठ कल्याणमल जी गर्भित भाषण हुआ। हम और डॉ. के उत्तराधिकारियों द्वारा चालित सक्सेना भी बोले थे । उज्जैन के मान्टेस्सरी ढङ्ग का विद्यालय अनूठा भाइयों का आग्रह था कि हम ठहरें; है। इसे देखकर हम सब को प्रसन्नता किन्तु हम ठहर न सके। इसके लिए हुई और हम लोगों ने सेठ जी की वह हमें क्षमा करेंगे। इस प्रकार सूझ की प्रशंसा की। वीर जयंती हमारा यह प्रवास सुखद रहा! अहिंसा (रचयिता-श्री महेन्द्र सागर जैन, प्रचण्डिया, 'मधुकर', बी० ए०, साहित्यालंकार) हिंसक क्रूर कुचाली मनुष्यों को, प्रेम का शान्ति से पंथ दिखाती।. . पीडित-प्राणियों को बड़े प्रेम से, पाठ सुधीरता का सिखलाती। हो न प्रसन्न कभी सुख में दुख में, दुखी होना कभी न बताती ॥ पावन मानव आतम ज्ञान के हेतु, मनुष्यों के चित्त चुराती॥ भीषण क्रोध की पोंड ती अग्नि को, शान्ति का आशव देती अहिंसा। मान से लिप्त मनुष्य को नित्य, सु-ज्ञान का भान कराती अहिंसा। लोम के बन्धन को निशि-वासर, पाठ अलोभ का देती अहिंसा ॥ माया से युक्त अँधेरे को शीघ्र, प्रभाकर-सा हर लेती अहिंसा-॥टूटे हुए उर तारों को मोद. से, जोड़ने के अनुकूल अहिसा ।। खिन्नता लाती सदा है विपन्नता, है इसके प्रतिकूल. (अहिंसा ।। प्रेम का पंथ पयान के योग्य, बताती मिटाती है शूल अहिसा॥ 'जीना जिलाना सभी को यहाँ', सिखलाती सदा यह मंत्र अहिंसाः।।

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