Book Title: Ahimsa Vani 1952 06 07 Varsh 02 Ank 03 04
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Jain Mission Aliganj

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Page 70
________________ * अहिंसा-वाणी * मारने कहा कि ज़माने ने छात्रों में लेखों को पढ़कर आपने उनकी ऐसी तर्कबुद्धि जागृत की है कि प्रतिलिपियाँ तैयार कर रक्खीं हैं। उनके लिए नये ढंग का साहित्य शिवजी की एक मूर्ति बिल्कुल जैन सिरजा जाये तो भले ही वे प्रभावित तीर्थङ्कर की मुद्रा में बनाई गई है। हों। मिशन का ध्यान उस ओर है! आपसे मिलकर हमें बड़ी प्रसन्नता खुले अधिवेशन काफी सफल हुई । डॉ० वेल्यी को आपने मूर्तियों रहे। जैन और अजैन जनता पर्याप्त का महत्व बड़े अच्छे ढंग से बताया। सिंख्या में उपस्थित होती थी। विश्व- किन्तु एक बात देखकर हमें दुख शांति का जो प्रस्ताव स्वीकृत हुआ, हुआ कि संग्रहालय का स्थान बहुत 'उसकी गूंज भारत के बाहर जरमनी ही संकुचित है-कुछ मूर्तियां तो इगलैंड आदि देशों के प्रेस में रही। खुले में पड़ी हुई है । शासन का यहां हमें मध्य प्रान्त के प्रमुख राज कर्तव्य है कि शीघ्र ही एक नया मन्त्री श्री मिश्री लाल जी गंगवाल भवन संग्रहालय के लिए निर्माण दर्शन हये । आप बहत ही सरल कराये । साथ ही एक फोटो ग्राफर और मिलनसार है। प्रभुता की गंध भी रखे । जानता को सत्प्रेरणा देने भी आप में नहीं है-सेवाभावी हैं का यह साधन है-उसकी ओर 'आप। आप के कर कमलों द्वारा उपेक्षा नहीं होना चाहिये। अधिवेशन का . उद्घाटन किया इन्दौर में हमारे साथ दिगम्बरगया था। श्वेताम्बर-स्थानकवासी-तेरहपंथी अधिवेशन में हमें म० भा० आदि सभी जैनी सहयोग दे रहे थे। पुरातत्व विभाग के उपाध्यक्ष और सेठ मंगलदास जी आदि का उत्साह इन्दौर संग्रहालय के क्यूरेटर श्री उल्लेखनीय है। आज हम मिलकर डॉ० हरिहर जी त्रिवेदी के दर्शन ही आगे बढ़ सकते हैं। हुये । आप शिष्टाचार और प्रेम की वहां हमने यह भी अनुभव मूर्ति हैं। दूसरे दिन छुट्टी होते हुये किया कि हमारे यहाँ अच्छे वक्ताओं भी आपने हमें संग्रहालय दिखाने की की कमी है । रतलाम, मंदसौर, कृपा की ! संग्रहालय में मालव की भुसावल, खंडवा आदि के भाई अमूल्य प्राचीन कीर्तियाँ एकत्रित चाहते थे कि हम उन्हें वीर जयंती की गई हैं और उनका चयन क्रम उत्सव के लिये वक्ता दें ; परन्तु इतने और परिचय डॉ० सा० की विद्वता वक्ता नहीं थे जो सब स्थानों को 'और सूझबूझ को पद पद पर बता भेजे जाते । फिर भी रतलाम, खंडवा, रहा है। आप निरन्तर उनपर भुसावल आदि स्थानों पर विद्वान अन्वेषण करते रहते हैं, कई शिला पहुंचे थे।

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