Book Title: Ahimsa Vani 1952 06 07 Varsh 02 Ank 03 04
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Jain Mission Aliganj

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Page 59
________________ * उत्तर भारत की जैन मूर्ति कला * ४७ हैं। अतः यह स्वाभाविक ही था कि तथा पाडस वंश के अनेक राजाओं इन स्थानों पर धर्म, कला तथा शिक्षा ने जैन कला को संरक्षण एवं प्रोत्सासंस्थाओं की स्थापना होती । हन दिया। इन वंशों के कई राजा कौशाम्बी, प्रभास, श्रावस्ती, काम्पिल्य, जैन-धर्मानुयायी थे। इनमें सिद्धराज अहिच्छत्रा, हस्तिनापुर, देवगढ़, जयसिंह, कुमारपाल, अमोघवर्ष राजगृह, वैशाली, मन्दारगिरि, पावा- अकालवर्ष तथा. गंगवंशी, मारसिह पुरी आदि ऐसे ही स्थान थे। इन द्वितीय के नाम उल्लेखनीय हैं। इन स्थानों से जैक कला की जो प्रभूत शासकों को जैन धर्म की ओर प्रवृत्त सामग्री उपलब्ध हुई है उससे पता करने का श्रेय स्वनामधन्य हेमचन्द्र, चलता है कि जैन धर्म ने अपनी जिनसेन, गुणभद्र; कुन्दकुन्द आदि विशिष्टता के कारण भारतीय लोक जैन आचार्यों को है। राज्य-संरक्षण जीवन को कितना अधिक प्रभावित प्राप्त होने एवं विद्वान आचार्यों द्वारा कर दिया था। जैन धर्म की अजस्र धार्मिक प्रचार में क्रियात्मक योग धारा उत्तर भारत तक सीमित नहीं देने पर जैन साहित्य तथा कला की रही, बल्कि वह भारत के अन्य भागों बड़ी उन्नति हुई। मध्यकाल में प्रायः को भी आप्लावित करती रही । मध्य समस्त भारत में जैन मंदिरों एवं भारतमें ग्वालियर, चंदेरी, सोनागिरि प्रतिमाओं का निर्माण जारी रहा । खजुराहों, अजयगढ़, कुण्डलपुर, इनमें से कुछ तो ललित कला की जसो, अहार और रामटेक एवं राज- दृष्टि से तथा तत्कालीन भारतीय पूताना तथा मालवामें चन्दाखेड़ी, संकृति की व्याख्या करने की दृष्टि आबू पर्वत, सिद्धवरकूट तथा उज्जैन से बड़ी महत्वपूर्ण कृतियाँ है। प्रसिद्ध जैन केंद्र रहे हैं। इसी प्रकार मध्यकालीन जैन कला में अलसौराष्ट्र, गुजरात तथा बम्बई प्रदेश करण की मात्रा विशेष मिलती है। में गिरनार, बलभी, शत्रुजय, अण- इस काल की देवी-देवताओं की प्रतिहिलवाड़ा, एलोरा और बादामी माओं में प्रधान मूर्ति के चारों ओर तथा दणिण में बेलूर, श्रवणवेलगोला परिचारक गण तथा अन्य विविध तथा हलेवीड आदि स्थानों में जैन अलंकरण बहुलता के साथ उकरे स्थापित, मूर्तिकला तथा चित्रकला मिलते हैं। तीर्थङ्कर मूर्तियों में उनके एक दीर्घकालतक प्रवर्धित होती रही। लांछन भी पाये जाते हैं, जिससे यह ___ भारत के अनेक राजवंशों ने भी जानने में आसानी होती है कि अमुक जैन कला की उन्नति में योग दिया। मूर्ति किस तीर्थङ्कर की है। अनेक गुप्त शासकों के बाद चालुक्य, राष्ट्र- तीर्थङ्कर मूर्तियों में हिन्दू देवी-देवता कूट, कलचुरि, गंग, कदम्ब, चोल इन्द्र, कुवेर, गणपति, सरस्वती,

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