Book Title: Ahimsa Vani 1952 06 07 Varsh 02 Ank 03 04
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Jain Mission Aliganj

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Page 56
________________ * हिंसा-वाणी ४४ भाषा संस्कृत और प्राकृत का मिश्रण है । इन लेखों के द्वारा तत्कालीन जैन धर्म के सम्बन्ध मे बहुत जानकारी प्राप्त हुई है, जिसकी पुष्टि प्राचीन साहित्य से भी होती है । मथुरा कला की मूर्तियों में हाथ में पुस्तक लिए हुये सरस्वती, अभय मुद्रा में देवी तथा नैगेमेश की अनेक मूर्तियाँ विशेष उल्लेखनीय हैं । तोर्थंकर प्रतिमाएँ प्रायः ध्यानमुद्रा में बैठी हुई मिली हैं । कुछ कायोसर्ग मुद्रा में भी हैं । कुषाण गुप्त तथा मध्यकाल की अनेक सर्वतो - भद्रिका प्रतिमाएँ भी उपलब्ध हुई हैं । कलाकारों ने विभिन्न तिथंकर मूर्तियों से निर्माण में दिव्य सौंदर्य के साथ आध्यात्मिक गंभीर्य का जैसा समन्वय किया है उसे देखकर पता चलता है कि भावाभिव्यक्ति में ये कलाकार कितने अधिक कुशल थे ! प्राचीन बौद्ध एवं जैन स्तूपों के चारों ओर वेदिका की रचना का प्रचलित था । वेदिका स्तंभों आदि के ऊपर स्त्री-पुरुषों, पशु-पक्षियों लता - वृक्षों आदि का चित्रण किया जाता था । कंकाली टीले से प्राप्त जैन वेदिका स्तंभों पर ऐसी बहुत सो मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं, जिनमें तत्कालीन आनन्दमय लोकजीवन की सुन्दर झाँकी मिलती है। इन मूर्तियों विविध आकर्षक मुद्राओं में खड़ी स्त्रियों के चित्रण अधिक हैं। किसी खम्भे पर कोई वनिता उद्यान में फूल चुनती हुई दिखाई गई है तो किसी पर कंदुक क्रोडा में व्यस्त युवती प्रदर्शित है । कोई सुन्दरी भरने के नीचे स्नान का आनन्द ले रही हैं तो दूसरी स्नान करने के उपरांत कपड़े पहन रही है या अपने गीले केश सुखा रही है । किसी स्तंभ पर बालों के सँवारने का दृश्य है तो किसी पर कपोलों पर लोध्रचूर्ण मलने या पैरों पर अलता लगाने का । कहीं कोई रमणी पुष्पित वृक्ष की छाया में बैठकर वीणा या वांसुरी बजाने में तल्लीन है तो दूसरी नृत्य में । वास्तव मैं मथुरा के ये वेदिका स्तंभ कलात्मक शृंगार और माधुर्य के जीते-जागते रूप हैं, जिन पर कला - कारों ने सुरूचिपूर्ण ढंग से प्रकृति और मानवजगत् की सौंदर्य राशि उपस्थित कर दी है । ईसवी सन् के प्रारम्भ से लेकर ई० पांच की शती के अन्त तक का युग मथुरा की मूर्तिकला का 'स्वर्णयुग' कहा जा सकता है । इस युग का प्रथमार्ध विशेष महत्व का है । इस काल के कुषाण शासकों को कला के सौंदर्य पक्ष ने अधिक आकृष्ट किया । मथुरा के कलाकारों ने अपने संरक्षकों को इस भावना का स्वागत किया और उसकी पूर्ति के लिए कला के शृङ्गार को उन्नत किया । कुण काल के जो तोरण, वेदिका स्तम्भ, सूची, आयागपट्ट आदि तथा मिट्टी की जो बहुसंख्यक मूर्तियाँ मिली हैं

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