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शांति-प्रस्ताव . (श्री अखिल विश्व जैन मिशन के प्रथम अधिवेशन पर आयोजित अहिंसा सांस्कृतिक सम्मेलन में निम्न प्रस्ताव पास किया गया, जो संयुक्त राष्ट्रसंघ, भारत सरकार आदि को भेजा गया। जरमनी, इंगलैंड, जापान आदि देशों के सामयिक पत्रों में इस पर चरचा गई है। -सं०)
गत् दो महायुद्धों और कोटिया- शक्ति के लोभ से उत्पन्न होने के कारण, युद्ध से यह स्पष्ट तय हो गया कि अप्राकृतिक विनाश की तैयारी है। इस भूतल पर मानव जाति के सुख- अतः, यह संयुक्त राष्ट्रसंघ से शान्ति-युग का निर्माण सशस्त्रीय अपील करता है कि वह अपनी नीति ध्वंशात्मक कार्यों से नहीं हो सकता। को इस प्रकार की बनाए जो विश्व यह सभी तरह से निर्णीत हो गया है का प्रत्येक राज्य एवं राष्ट्र उसका ज्वालामुखियों के समान युद्ध प्राकृतिक सदस्य बनने को उत्साहित हो तथा अवश्यम्भावी नहीं हैं जो मानव संघ एवं उसके मंत्र के पुनर्गठन से समाज की परिस्थितियों को सुगम उसके मत वैषम्य सुलझ सके और एवं स्वस्थ बना सकें। इसकी अपे- कठिनाइयाँ दूर की जा सकें । इन सब क्षाकृत युद्ध महाशक्तियों के वे कुशल के ऊपर यह सभा 'यूनेस्को' (सयुक्तमोर्चे हैं जो सकारण सत्य को नाम राष्ट्र संघ की शैसिक, वैज्ञानिक, पर अपने राजनैतिक स्वत्व को जमाने सांस्कृतिक संस्था) को प्रेरित करती के लिए और संसार के अन्य विभाग है कि वह सत्य एवं अहिंसा को पर तानाशाही कायम करने के लिए, राष्ट्रीय-शिक्षा का सभी व्यक्तिपों के प्रयत्न शील हैं।
लिए आवश्यक अङ्ग बनाए और इस ___ इस सत्य पर विश्वास करते हुए विषय में यह विशेषकर भारत सरकार श्री अखिल विश्व जैन मिशन का यह से निवेदन करती है कि वह अपने सम्मेलन यहाँ अपने मतों पर भली देश के नागरिकों में सत्य-अहिंसा प्रकार विचार विनिमय करने के पश्- की आदतें डालने के निमित्त कुछ चात यह मत प्रस्तुत करता है कि युद्ध रचनात्मक योजनाएँ बनाए।
"पीड़ा की गोदी में सोया, खेला दिल के अरमानों से । विहँसा तो हा-हाकारों में, रूठा तो अपने प्राणों से ॥ आध्यात्मिक पथ पर बढ़ने को, अब क्रान्ति चाहता मानव ।
सुख शान्ति चाहता है मानव ॥"
-स्वर्गीय श्री 'भागवत'