Book Title: Ahimsa Vani 1952 06 07 Varsh 02 Ank 03 04
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Jain Mission Aliganj

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Page 47
________________ * जैन धर्म और योग पर एक नवीन दृष्टिकोण * ३७ 'उसे हम 'जैन चरित्र' के नाम से जैन धर्म की त्याग भावना की उच्चता पुकारते हैं। वर्तमान ऐतिहासिक तक कोई भी अन्य धर्म नहीं पहुँच खोजों ने जैन धर्म की प्राचीनता पर सकते है। पर पर्याप्त प्रकाश डाला है। वह भारत जैनों का नैतिक स्तर शताब्दियों का श्रादि धर्म है । वैदिक आर्य भारत य भारत तक भारत में अपनी विशेषता के का में आये भी नहीं थे कि उससे पहले लिए प्रसिद्ध रहा है; परन्तु वर्तमान यहाँ जैनों की अहिंसा लोक का कल्याण समय में इस नैतिकता का अवमूल्यांकर रही थी। कन होने लगा है। सच तो यह है मेरे प्रिय मित्र स्व० हेनरी कि जैन धर्म निम्न से निम्नतर व्यक्ति ज़िम्मर ( Henri Zimmer ) ने को भी उच्चतम बनाने का अवसर भारतीय दर्शनों का गहरा अध्ययन देता है । जैन धर्म का मुख्य सिद्धान्त किया था। उन्होंने ही मुझे जैन धर्म अहिंसा है। यह अहिंसा मनुष्य में का अध्ययन करने के लिये प्रेरित - कायरता का संचार नहीं करती, वरन् किया। उन्होंने बताया कि प्राचीन उसकी आत्मशक्ति को प्रबल और शुद्ध भारत का पथप्रदर्शक जैन धर्म रहा है । भ० पार्श्वनाथ के बहुत पहले से बनाती है। यही कारण है कि जैन 1 धर्म को बहुत समय तक भारत के जैन धर्म भारत में सच्चे योग का न अनेक राजाओं, मंत्रियों और सेनाप्रचार कर रहा था। प्रो० जिम्मर ने पतियों ने अपनाया था। 'भारतीय दर्शनों' पर जो पुस्तक लिखी है उसमें भ० पार्श्वनाथ के आज की भटकी हुई मानवता को पूर्वभवों का रहस्योद्धाटन करके योग भी सब दिन अपने अहंभाव को चर्या के विकाश पर प्रकाश डाला है। भूलकर और व्यक्तिगत स्वार्थों को योग साधना के विषय में विद्वानों में तिलांजलि देकर अहिंसा के चरणों मतभेद हो सकता है, किन्तु यह एक में ही आना होगा और तब ही विश्व एक स्वीकृत सत्य और तथ्य है कि शान्ति संभव होगी। 'अहिंसा-वाणी' में विज्ञापन देकर लाभ उठाइए। . .... अहिंसाचाणी कार्यालय, ____ अलीगंज (एटा) उ० प्र०

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