Book Title: Ahimsa Vani 1952 06 07 Varsh 02 Ank 03 04
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Jain Mission Aliganj

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Page 50
________________ * अहिंसा-वाणी * आ निराशा दूर कर देगी सभी मस्ती दिलों की, और सूखेंगे सुमन-गण के सु-मनजो आज हैं उल्लास से, उत्साह से अापूर्य अति ही । रूप का लावण्य उनसे दूर होगा और कोमलता, मिटा देंगे झकोरे-कुटिल झंझा के। सुरभि भी तज साथ उनसे दूर होगी, जा कहीं अन्यत्र, बसने के लिए। _ और उनकी भाँति ही वे भी करेंगे कटु प्रतीक्षा एक झोंके से गिरा जो मिला मिट्टी में उन्हें दे । आ रही श्यामा-तमा है, दूर करने क्लान्ति जग की, .. मेंटने को श्रीति श्रमिकों की पुनः देने उन्हें, वह शक्ति जिससे फिर जुटें वे मूक-पशु की भाँति अपने कार्य पर। वह स्वप्न की दुनिया लिए है साथ में आती; न जिस पर है नियन्त्रण बुद्धि का, जो पूर्ण करती, सुप्त इच्छाएँ युगों से जो अपूरित । है वही निज-कोड़ में आश्रय सदा देती दलित को, दुखित-जन का है एक है वह ही सहारा, जो उषा निज आगमन से छीन लेगी। पह जगत है केन्द्र कटुता का न मादकता यहाँ है, क्रूर-बलि-वेदी यही उन शावकों की है कि जिनकोज्ञान जग की। कुटिलता का, नीचता का । यही है उत्थान जीवन का, यही अवसान भी है, 'मधु-उषा' से हुलसते आ 'मौन-संध्या' वत तजो जग, छोड़कर अवसाद के कुछ चिह्न-निर्मम ।

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