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* अहिंसा-वारणी
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मौलिक सत्य है और चूंकि हमारे जैन भाईयों तथा बहनों ने उसे उत्तराधिकार में पाया है इसलिये उनका उत्तरदायित्व बहुत बढ़ जाता है जैन लिट्रेचर संसार में सबसे बड़ा लिट्रेचर है। जिन आचार्यों ने -जो चीज दी है वह इसलिये दी इससे संसार का उद्धार हो जाये और हो सकता है। जैन धर्म में मौलिकता की ओर ध्यान दिया गया है ।
मैं यहाँ पर उन साधुओं की कल्पना करता हूँ जो कि भविष्य में होने वाले हैं और उनके द्वारा ऐसे विश्व विद्यालय बनाये जावेंगे जो आज तक कहीं भी नहीं बने हैं । बाहर के लोग विदेश से राजनीति
कुछ ग्रहण करने नहीं आयेंगे बल्कि वे यहाँ से कुछ और ही वस्तु लेने आयेंगे ।
मैं आज तीस वर्षों से सारे संसार का भ्रमण करता आ रहा हूँ । मैंने किसी भी विश्व विद्यालय में जैन धर्म पर हिंसा का नाम नहीं सुना, केवल भारत वर्ष में ही इसका नाम सुनता हूँ। अभी विदेशों से जो विद्वान आते हैं तो हम कहते हैं कि यह आये वह आये । किन्तु हमें तो हिंसा का तोहफा सबको देना है यदि अगले पाँच वर्षों में हम इस योग्य नहीं हो सके कि हम दुनियाँ को हिसा का पाठ पढ़ा सकें तो हम निश्चय ही स्वार्थी हैं ।
हमारे यहाँ उदार भाव,
आतिथ्य
सत्कार करना अपने ही क्षेत्र में सीमित है परन्तु अब ऐसा समय आ गया है कि वह बड़ा करके सार्वभौमिक कर देना चाहिये ।
बौद्ध धर्म का सौ वर्ष पहिले नाम कोई नहीं जनता था आज इसके जानने वाले अधिकतर हैं परन्तु ऐसा कौन सा कारण है कि जैन धर्म आज तक प्रकट नहीं हुआ है ? इस समय संसार में इंग्लिश का स्थान प्रधान हो गया। भारत का विदेशों से संबंध स्थापित करने के लिये इसके साहित्य. का अनुवाद इंग्लिश में होना चाहिये तब ही हम संसार में अपनी आवज पहुँचा सकते हैं और अपने कार्य में सफल हो सकते हैं।
मैं कुछ ही सप्ताहों में इंग्लैंड, फ्रांन्स, स्विटजरलैंड, जर्मनी और इटली जाऊँगा । वहाँ लोग मुझसे पूछेंगे कि भारत का क्या सन्देश है तो मैं उनसे यही कहूँगा महात्मा गांधी ने अहिंसा का जो सन्देश दिया है वही सन्देश है। हिसा के द्वारा ही हम एक विश्व कोष के यथार्थ विश्वव्यापी रूप दे सकते हैं आज विश्व की विविध भाषाओं में बहुत से कोष है किन्तु अहिंसा का विश्वकोष अभी तक नहीं प्रकाशित हुआ है। दुनियां के बहुत से विद्वान इससे सहमत हो जायेंगे और विदेशों से सम्पर्क आसानी से स्थापित हो जावेगा । अतः श्रहिंसा का विश्वकोष निर्माण कीजिए । [शेष भाग १३ वें पृष्ठ पर ]