Book Title: Agam Suttani Satikam Part 06 Bhagvati
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 344
________________ शतकं - २४, वर्गः-, उद्देशकः - १२ ३४१ जहन्त्रेणं एकूणपन्नं राइंदियाइं उक्कोसेणवि एगूणपन्नं राइंदियाई संवेहो उवजुंजिऊण भाणियव्वो ९ । जइ चउरिदिएहिंतो उववज्जइ एवं चेव चउरिंदियाणवि नव गमगा भाणियव्वा नवरं एतेसु चेव ठाणेसु नाणत्ता भाणियब्बा सरीरोगाहणा जहन्त्रेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं उकस० चत्तारि गाउयाई ठिती जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेण य छम्मासा एवं अनुबंधोवि चत्तारि इंदियाई सेसं तहेव जाव नवमगमए कालादेसेणं जह० बावीसं वाससहस्साइं छहिं मासेहं अब्भहियाई उक्कोसेणं अट्ठासीतिं वाससहस्साइं चउवीसाए मासेहिं अब्भहियाइं एवतियं ९ । जइ पंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उवव० किं सन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्रंति असन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणए० ?, गोयमा ! सन्निपंचिंदिय०, जइ असन्निपंचिंदिय० किं जलयरेहिंतो उ० जाव किं पज्जत्तएहिंतो उववज्रंति अपज्जत्तएहिंतो उव० ?, गोयमा ! पज्जतएहिंतोवि उवव० अपजत्तएहिंतोवि उवव०, असन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए पुढविक्काइएसु उववज्जित्तए से णं भंते! केवति ?, गो० ! जहन्त्रेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं बावीसं वाससह ० । ते णं भंते! जीवा एवं जहेव बेइंदियस्स ओहियगमए लद्धी तहेव नवरं सरीरोगाहणा जह० अंगुलस्स असंखे० ० उक्को० जोयणसह० पंचिंदिया ठिती अनुबं० जह० अंतोमु० उक्को० पुव्वको० सेसं तं चैव भवादे० जह० दो भवग्गहणाई उक्को० जोयणसह० पंचिंदिया ठिती अनुबं० जह० अंतोमु० उक्को चत्तारि पुव्वकोडीओ अट्ठासीतीए वाससहस्सेहिं अब्भहियाओ एवतियं० नवसुवि गमएसु कायसंवेहो भवादे० जहन्त्रेणं दो भवग्गहणाई उक्कोसे० अट्ठ भवग्गहणाई कालादे० उवजुज्जिऊण भाणियव्वं, नवरं मज्झिमएसु तिसुगमएसु जहेव बेइंदियस्स पच्छिल्लएसु तिसु गमएसु जहा एतस्स चैव पढमगमएसु, नवरंठिती अणुबंधो जहन्नेणं पुव्वकोडी उक्कोसेणवि पुव्वकोडी | सेसं तं चैव जाव नवगमएसु जह० पुव्वकोडी० वावीसाए वाससहस्सेहिं अब्भहिया उक्कोसेणं चत्तारि पुव्वकोडीओ अट्ठासीतीए वाससहस्सेहिं अब्भहियाओ एवतियं कालं सेविज्जा ९ । जइ सन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणिए किं संखेज्जवासाउय० असंखेज्जवासाउय० ?, गोयमा संखेज्जवासाउय० नो असंखेज्जवासाउय० ?, जइ संखेज्जवासाउय० किं जलयरेहिंतो सेसं जहा असन्नीणं जाव ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्रंति एवं जहा रयणप्पभाए उववज्ज्रमाणस्स सन्निस्स तहेव इहवि, नवरं ओगाहणा जहन्त्रेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग उक्कोसेणं जोयणसहस्सं सेसं तहेव जाव कालादेसेणं जहन्त्रेणं दो अंतोमुहुत्ता उक्कोसेणं चत्तारि पुव्वको० अट्ठासीतीए वाससहस्सेहिं अब्भहियाओ एवतियं० । एवं संवेहो नवसुवि गमएसु जहा असन्नीणं तहेव निरवसेसं लद्धी से आदिल्लएसु तिसुवि गमएसु एस चेव मज्झिल्लएसु तिसुवि गमएस एस चेव नवरं इमाई नव नाणत्ताई ओगाहणा जहन्त्रेणं अंगुलस्स असंखेज्जति० उक्को० अंग, ० असंखे० तिन्नि लेस्साओ मिच्छादिट्ठी दो अन्नाणा कायजोगी तिन्नि समुग्घाया ठिती जहन्त्रेणं अंतोमुहूत्तं उक्को० अंतोमु० अप्पसत्था अज्झवसाणा अणुबंधो जहा ठिती सेसं तं चैव पच्छिल्लएसु तिसुवि गमएसु जहेव पढमगमएनवरंठिती अणुबंधो जहन्नेणं पुव्वकोडी उक्कोसेणवि पुब्वकोडी सेसं तं चैव ॥ वृ. 'जइ बेइदिए' त्यादि, 'बारस जोयणाइं' ति यदुक्तं तच्छङ्खमाश्रित्य यदाह - "संखो For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

Loading...

Page Navigation
1 ... 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532