Book Title: Agam Suttani Satikam Part 06 Bhagvati
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 384
________________ शतकं-२५, वर्गः-, उद्देशकः - ३ ३८१ सादीयाओ अप० णो अणादीयाओ सप० अणादीयाओ अप० एवं जाव उड्डमहायताओ । लोयागाससेढीओ णंभंते! किं सादीयाओ सप० पुच्छा, गो० ! सादीयाओ सपज्जवसियाओ नो सादीयाओ अपज्जवसियाओ नो अनादीयाओ सपज्जव० नो अनादीयाओ अपज्ज० एवं जाव उड्डमहायताओ। अलोयागाससेढीओ णं भंते! किं सादीयाओ सप० पुच्छा, गोयमा ! सिय साइयाओ सपज्जवसियाओ १ सिय साईयाओ अपज्जवसियाओ २ सिय अनादीयाओ सपज्जवसियाओ ३ सिय अनाइयाओ अपज्जवसियाओ ४, पाईणपडीणाययाओ दाहिणुत्तरायताओ य एवं चेव, नवरं नो सादीयाओ सपज्जवसियाओ सिय साईयाओ अपज्जवसियाओ सेसं तं चेव, उड्डमहायताओ जाव ओहियाओ तहेव चउभंगो । सेढीओ णं भंते! दव्वट्टयाए किं कडजुम्माओ तेओयाओ ? पुच्छा, गोयमा ! कडजुम्माओ नो तेओयाओ नो दावरजुम्माओ नो कलियोगाओ एवं जाव उड्डमहायताओ, लोगागाससेढीओ एवं चेव, एवं अलोगागासेढीओवि । सेढीओ णं भंते! पएसट्टयाए किं कडजुम्माओ पुच्छा, एवं चेव एवं जाव उड्ढमहायताओ लोयागाससेढीओणं भंते! पएसट्टयाए पुच्छा, गोयमा ! सिय कडजुम्माओ नो तेओयाओ सिय दावरजुम्माओ नो कलिओगाओ, एवं पाईणपडीणायता ओवि दाहिणुत्तरायताओवि, उद्दमहाययाओणं पुच्छा, गोयमा ! कडजुम्माओ नो तेओगाओ नो दावरजुम्माओनो कलियोगाओ अलोगागाससेढीओ णं भंते! पएसट्टयाए पुच्छा, गोयमा ! सिय कडजुम्माओ जाव सिय कलिओगाओ, एवं पाईणपडीणायताओवि एवं दाहिणुत्तरायताओवि, उड्डमहायताओवि एवं चेव, नवरं नो कलिओगाओ सेसं तं चेव । वृ. 'सेढीओ णं भंते ! किं साईयाओ' इत्यादिप्रश्नः, इह च श्रेण्योऽविशेषितत्वाद्या लोके चालोके तासां सर्वासां प्रतिग्रहणं, सर्वग्रहणाश्च ता अनादिका अपर्यवसिताश्चेत्येक एव भङ्गकोऽनुमन्यते शेषभङ्गकत्रयस्य तु प्रतिषेधः । 'लोगागाससेढीओ ण' मित्यादौ तु 'साइयाओ सपज्जवसियाओ' इत्येको भङ्गकः सर्वश्रेणीभेदेष्वनुम्न्यते, शेषाणां तु निषेधः, लोकाकाशस्य परिमितत्वादिति 'अलोगागाससेढी' त्यादौ सिय साईयाओ सपज्जवसियाओत्ति प्रथमो भङ्गकः क्षुल्लकप्रतरप्रत्यासत्तौ ऊर्ध्वायतश्रेणीराश्रित्यावसेयः, 'सिय साइयाओ अपज्जवसियाओ त्ति द्वितीयः, स च लोकान्तादवधेरारभ्य सर्वतोऽवसेयः, 'सिय अणाईयाओ सपज्जवसियाओ' त्ति तृतीयः, स च लोकान्तसन्निधौ श्रेणीनामन्तस्य विवक्षणात्, 'सिय अनाईयाओ अपज्जवसियाओत्ति चतुर्थः, स च लोकं परिहृत्य याः श्रेणयस्तदपेक्षयेति । ‘पाईणपडीणाययाओ’इत्यादौ 'नो साईयाओ सपज्जवसियाओ' त्ति अलोके तिर्यक्श्रेणीनां सादित्वेऽपि सपर्यवसितत्वस्याभावान्न प्रथमो भङ्गः, शेषास्तु त्रयः संभवन्त्यत एवाह - 'सिय साइयाओ' इत्यादि । 'सेढी णं भंते! दव्वट्टयाए किं कडजुम्माओ ?' इत्यादि प्रश्नः, उत्तरंतु 'कडजुम्माओ' त्ति, कथं? वस्तुस्वभावात्, एवं सर्वा अपि, यः पुनर्लोकालोकश्रेणीषु प्रदेशार्थतया विशेषोऽसावुच्यते तत्र 'लोगागाससेढीओणं भंते! पएसट्टयाए' इत्यादौ स्यात् कृतयुग्मा अपि स्यात् द्वापरयुग्मा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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