Book Title: Agam Suttani Satikam Part 06 Bhagvati
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 493
________________ ४९० भगवतीअङ्गसूत्रं (२) ३४/१/२/१०३५ कर्म प्रकुर्दन्ति, विषमस्थितिकसम्बन्धि त्वन्तिममङ्गद्वयमनन्तोपपन्नकानां न संभवत्यनन्तरोपपन्नकत्व विषमस्थिरतेरभावात् । एतच्च गमनिकामात्रमेवेति, -शतकं-३४/१ उद्देशकाः-२ समाप्तम् : ___-शतकं-३४/१ उद्देशकः-३:मू. (१०३६) कइविहाणं भंते ! परंपरोववन्नगा एगिंदिया पन्नत्ता?, गोयमा! पंचविहा परंपरोवनगा एगिदिया प० तं०-पुढविक्काइया भेदो चउक्कओ जाव वणस्सइकाइयत्ति। परपरोववन्नगअपज्जत्तसुहमपुढविकाइएणंभंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहए २ जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए जाव पञ्चच्छिमिल्ले चरिमंते अपञ्जत्तसुहमपुढविकाइयत्ताए उवव० एवंएएणं अभिलावेणंजहेव पढमोउद्देसओजाव लोगचरिमंतोत्ति कहिन्नं भंते! परंपरोववन्नगबायरपुढविकाइयाणं ठाणा प०?, गोयमा! सट्ठाणेणं अट्ठसु पुढवीसु एवं एएणं अभिलावेणं जहा पढमे उद्देसए जाव तुल्लद्वितीयत्ति । सेवं भंते!२ ति। -शतकं-३४/१ उद्देशकाः -४-११:मू. (१०३७) एवं सेसावि अट्ट उदेसगा जाव अचरमोत्ति, नवरं अनंतरा अनंतरसरिसा परंपरा परंपरसरिसा चरमा य अचरमा य एवं चेव, एवं एते एक्कारस उद्देसगा। -शतकं-३४, द्वितीयं शतकं-उद्देशकाः-१-११:मू. (१०३८) कइविहाणंभंते! कण्हलेस्साएगिदियाप०?,गोयमा! पंचविहा कण्हलेस्सा एगिदिया प० भेदो चउक्कओ जहा कण्हलेस्सएगिदियसए जाव वणस्सइकाइयत्ति। कण्हलेस्सअपज्जत्तासुहुमपुढविकाइएणं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरच्छिमिल्ले एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिउद्देसओ जाव लोगचरिमंतेत्ति सव्वत्थ कण्हलेस्सेसु चेव उववाएयव्यो। कहिनं भंते! कण्हलेस्सअपज्जत्तबायरपुढविकाइयाणं ठाणा प० एवं एएणं अभिलावणं जहा ओहिउद्देसओ जाव तुल्लट्ठिइयत्ति । सेवं भंते ! २त्ति॥ एवं एएणं अभिलावेणं जहेव पढमं सेढिसयं तहेव एक्कारस उद्देसगा भाणियव्वा । -शतकं-३४ तृतीयं शतक:मू. (१०३९) एवं नीललेस्सेहिवि -शतकं-३४- चतुर्थ शतकं:मू. (१०४०) काउलेस्सेहिवि सयं, एवं चेव ।. -शतकं-३४-पञ्चमंशतकं :मू. (१०४१) भव सिद्धियएहिवि सयं ॥ -:शतकं-३४-षष्ठंशतकं:मू. (१०४२) कइविहा णं भंते ! अनंतरोववन्ना कण्हलेस्सा भवसिद्धिया एगिंदिया प० जहेवअनंतरोववन्नउद्देसओ ओहिओतहेव । कइविहाणंभंते! परंपरोववन्ना कण्हलेस्सभवसिद्धिया एगिदिया प०?, गोयमा! पंचविहा परंपरोववनगा कण्हलेस्सभवसिद्धिएयगिदियापं० ओहिओ भेदो चउक्कओ जाव वणस्सइकाइयत्ति। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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