Book Title: Agam Suttani Satikam Part 06 Bhagvati
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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शतकं-३०, वर्गः:, उद्देशकः-२
৮৩৭ सलेस्साणंभंते! अनंतरोववन्नगानेरइया किंकिरियावादी एवं चेव, एवं जहेव पढमुद्देसे नेरइयाणं वत्तव्वया तहेव इहविभाणियव्वा, नवरंजंजस्स अस्थि अनंतरोववनगाणं नेरइयाणं तंतस्स भाणियव्वं, एवं सव्वजीवाणंजाव वैमाणियाणं, नवरं अनंतरोववनगाणंजंजहिं अस्थि तंतहिं भाणियव्वं।
किरियावाईणंभंते! अनंतरोववनगा नेरइया किं नेरइयाउयंपकरेइ? पुच्छा, गोयमा! नो नेरइयाउयं पकरेंति नो तिरि० नो मणु० नो देवाउयं पकरेइ, एवं अकिरियावादीवि अन्नाणियवादीवि वेणइयवादीवि।
सलेस्साणंभंते! किरियावादीअनंतरोववन्नगानेरइया किनेरइयाउयंपच्छा. गोयमा! नो नेरइयाउयं पकरेइ जाव नो देवाउयं पकरेइ एवं जाव वेमाणिया, एवं सव्वट्ठाणेसुवि अनंतरोववन्नगा नेरइया न किंचिविआउयंपकरेइजाव अनागारोवउत्तत्ति, एवंजाववेमाणिया नवरं जंजस्स अस्थि तंतस्स भाणियव्वं ।
किरियावादी णं भंते ! अनंतरोववनगा नेरइया किं भवसिद्धिया अभवसिद्धिया ?, गोयमा! भवसिद्धिया नो अभवसिद्धिया।
___ अकिरियावादीणंपुच्छा, गोयमा! भवसद्धियाविअभवसिद्धियावि, एवं अन्नाणियवादीवि वेणइयवादिवि।
सलेस्सा णं भंते ! किरियावादी अनंतरोववन्नगा नेरइया किं भवसिद्धिया अभवसिद्धिया?, गोयमा ! भवसिद्धिया नो अभवसिद्धिया।
एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिए उद्देसए नेरइयाणं वत्तव्वया भणिया तहेव इहवि भाणियव्वाजावअनागारोवउत्तत्ति एवंजाव वेमाणियाणंनवरंजंजस्सअत्थितंतस्स भाणियव्वं, इमं से लक्खणं-जे किरियावादी सुक्कपक्खिया सम्मामिच्छदिट्ठीया एए सव्वे भवसिद्धिया नो अभवसिद्धिया, सेसा सव्वे भवसिद्धीयावि अभवसिद्धियावि । सेवं भंते ! इति ॥
वृ. एवं द्वितीयादय एकादशान्ता उद्देशका व्याख्येयाः ।
नवरं द्वितीयोद्देशके 'इमंसे लक्खणं ति से' व्यत्वस्येदं लक्षणं-क्रियावादी शुक्लपाक्षिकः सम्यग्मिथ्याटिश्च भव्य एव भवति नाभव्यः, शेषास्तुभव्याअभव्याश्चेति, अलेश्यसम्यग्दृष्टिज्ञान्यवेदाकषाययोगिनां भव्यत्वं प्रसिद्धमेवेति नोक्तमिति।
शतकं-३० उद्देशकः-२ समाप्तः
-शतकं-३ उद्देशक:-३:मू. (१००१) परंपरोववन्नगाणंभंते! नेरइया किरियावादी एवंजहेव ओहिओ उद्देसओ तहेव परंपरोववन्नएसुवि नेरइयादीओ तहेव निरवसेसं भाणियव्वं तहेव तियदंडगसंगहिओ। सेवं भंते ! २ जाव विहरइ।
-शतकं-३० उद्देशकः-४-११:मू. (१००२) एवं एएणं कमेणं जच्चेव बंधिसए उद्देसगाणं परिवाडी सच्चेव इहंपिजाव अचरिमोउद्देसो, नवरंअनंतरा चत्तारिवि एक्कगमगा, परंपरा चत्तारिविएक्कगमएणं, एवं चरिमावि, अचरिमावि एवं चेव नवरं अलेस्सो केवली अजोगी न भन्नइ, सेसंतहेव । सेवं भंते ! २ त्ति। एए एक्कारसवि उद्देसगा।
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