Book Title: Agam Suttani Satikam Part 06 Bhagvati
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
View full book text
________________
शतकं - २५, वर्ग:-, उद्देशकः - १
३६७
एएसि णं भंते! जीवाणं सलेस्साणं कण्हलेस्साण' मित्यादि, अथ कियद्दूरं तद्वाच्यमित्याह-‘जाव चउव्विहाणं देवाण' मित्यादि, तच्चैवम्- 'एएसि णं भंते! भवणसावासीणं वाणमंतराणं जोइणियाणं वेमाणायाणं देवाण य देवीण य कण्हेलासाणं जाव सुक्कलेसाण य यकरे२ हिंतो ?' इत्यादि ।
अथ प्रथमशते उक्तमप्यासां स्वरूपं कस्मात्पुनरप्युच्यते ?, उच्यते, प्रस्तावानान्तरायातत्वात्, तथाहि-इह संसारसमापन्नजीवानां योगाल्पबहुत्वं वक्तव्यमिति तत्प्रस्तावाल्लेश्याल्पबहुत्वप्रकरणमुक्तं । तत एव लेश्याऽल्पबहुत्वप्रकरणानन्तरं संसारसमापन्नजीवांस्तद्योगाल्पबहुत्वं च प्रज्ञापयन्नाह
मू. (८६३) कतिविहा णं भंते! संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता ?, गोयमा ! चोद्दसविहा संसारसमावन्नगा जीवा य, तं० - सुहुमअप्पज्जत्तगा 9 सुहुमपज्जत्तगा २ बादर अपजतगा ३ बादेरपजत्तगा ४ बेइंदिया अप्पज्जत्ता ५ बेइंदया पज्जत्ता ६ एवं तेइंदिया ८ एवं चउरिंदिया १० असन्निपंचिंदिया अप्पत्तगा ११ असन्निपंचिंदिया पज्जत्तगा १२ सन्निपंचिंदिया अपजत्तगा १३ सन्निपंचिंदिया पचत्तगा १४ ।
एतेसि णं भंते! चोदसविहाणं संसारसमावन्नगाणं जीवाणं जहनुक्कोसगस्स जोगस्स कयरे २ जाव विसेसाहिया ?, गोयमा ! सव्वत्थोवे सुहुमस्स अपजत्तगस्स जहन्नए जोए १ बादरस्स अपज्जत्तगस्स जहन्नए जोए असंखेज्जगुणे २ बेंदियस्स अपज्जत्तगस्स जहन्नए जोए असंखेज्जगुणे ३ एवं तेइंदियस्स ४ एव चउरिंदियस्स ५ असन्निस्स पंचिंदियस्स अपजत्तगस्स जहन्नए जोए असंखेज्जगुणे ३ एवं तेइंदियस्स ४ एवं चउरिंदियस्स ५ असन्निस्स पंचिदियस्स अपजत्तगस्स जहन्नए जोए असंखेज्जगुणे ६ सन्निस्स पंचिंदियस्स अपज्जत्तगस्स जहन्नए जोए असंखेज्जगुणे ७ सुहुमस्स पज्जत्तगस्स जहन्नए जोए असंखेज्जगुणे ८ बादरस्स पज्जत्तगस्स जहन्नए जोए असंखेजगुणे ९ सुहुमस्स अपज्जत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेज्जगुणे १० बादरस्स अपजत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेज्जगुणे ११ सुहुमस्स पज्जत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेज्जगुणे १२ बादरस्स पज्जत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेज्जगुणे १३ ।
बेंदियस्स पज्जत्तगस्स जहन्नए जोए असंखेज्जगुणे १४ एवं तेंदिय एवं जाव सन्निपंचिंदियस्स पज्जत्तगस्स जहन्नए जोए असंखेज्जगुणे १८ बेदियस्स अपजत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेज्जगुणे १९ एवं तेंदियस्सवि २० एवं चउरिदियस्सवि २१ एवं जाव सन्निपंचिंदियस्स अपजत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखे० २३ बेदियस्स पजत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखे० २४ ।
एवं तेइंदियस्सवि पज्जत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेज्जगुणे २५ चउरिंदियस्स पज्जत्तगस्स उक्कोस असंखे० २६ असन्निपंचिंदियपज्जत्त० उक्कोसए जोए असंखेज्जगुणे २७ एवं सन्निपंचिंदियस्स पज्जत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेज्जगुणे २८ ।
वृ. 'कइविहे 'त्यादि, 'सुहुम' त्ति सूक्ष्मनामकर्मोदयात् 'अपजत्तग' त्ति अपर्याप्तका अपर्याप्तकनामकर्मोदयात्, एवमितरे तद्विपरीतत्वात्, 'बायर' त्ति बादरनामकर्मोदयात्, एत चत्वारोऽपि जीवभेदाः पृथिव्याद्येकेन्द्रियाणां 'जघन्नुकोसगस्स जोगस्स' त्ति जघन्यो- निकृष्टः काञ्चिद्वयक्तिमाश्रित्य स एव च व्यक्त्यन्तरापेक्षयोत्कर्षः - उत्कृष्टो जघन्योत्कर्षः तस्य योगस्य
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Education International

Page Navigation
1 ... 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532