Book Title: Agam Suttani Satikam Part 06 Bhagvati
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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शतकं - २५, वर्ग:-, उद्देशकः - ३
अनंतपएसिए असंखेजपएसोगाढे ।
तत्थ णं जे से जुम्मपएसिए जे जहन्नेणं छप्पएसिए छप्पएसोगाढे प० उक्कोसेणं अनंतपएसिए असंखेजपएसोगाढे प०, तत्थ णं जे से घणतंसे से दुविहे प० तं० - ओयपएसिए जुम्मपएसिए य, तत्थ णं जे से ओयपएसिए से जहन्त्रेणं पणतीसपएसिए पणतीसपएसोगाढे उक्कोसेणं अनंतपएसिए तं चैव, तत्थ णं जे से जुम्मपएसिए जे जहन्नेणं चउप्पएसिए चउप्पएसोगाढे प० उक्को० अनंतपएसिए तं चेव ।
३७५
चउरंसे णं भंते! संठाणे कतिपदेसिए? पुच्छा, गोयमा ! चउरंसे संठाणे दुविहे प० भेदो जहेव वट्टस्स जाव तत्थ णं जे से ओयपएसिए से जहन्त्रेणं नवपएसिए नवपएसोगाढे प०, उक्कोसेणं अनंतपएसिए असंखेजपएसोगाढे प० ।
तत्थ णं जे से जुम्मवदेसिए जे जहन्नेणं चउपएसिए चउपएसोगाढे प० उक्कोसेणं अनंतपएसिए तं चैव तत्थ णं से घनचउरंसे से दुविहे प०, तंजहा - ओयपएसिए जुम्मपएसिए, तत्थ णं जे से ओयपएसिए से जहन्नेणं सत्तावीसइपएसिए सत्तावीसतिपएसोगाढे उक्को० अनंतपएसिए तहेव तत्थ जे से जुम्मपएसि से जहन्त्रेणं अट्ठपएसिए अट्ठपएसोगाढे प० उक्० अनंतपएसिए तहेव ।
आयए णं भंते! संठाणे कतिपदेसिए कतिपएसोगाढे प० ? गोयमा ! आयए णं संठाणे तिविहे प० तं० - सेढिआयते पयरायते घणायते, तत्थ णं जे से सेढिआयते से दुविहे प०, तं०ओयपएसिए य जुम्मपएसिए य ।
तत्थ णं जे ओयप० से जह० तिपएसिए तिपएसोगाढे उक्को० अनंतपए तं चेव, तत्थ णं जे से जुम्मपएसे जह० दुपएसिए दुपएसोगाढे उक्कोसेणं अनंता तहेव तत्थ णं जे से पयरायते से दुविहे पं० तं० - ओयपएसिए य जुम्मपएसिए य, तत्थ णं जे से ओयपएसिए से जहनेणं पन्नरसपएसिए पन्नरसपएसोगाढे उक्कोसेणं अनंत तहेव ।
तत्थ णं जे से जुम्मपएसिए से जहन्त्रेणं छप्पएसिए छप्पएसोगाढे उक्कोसेणं अनंत तहेव, तत्थणं जेसे घणायते से दुविहे पं० तं० - ओयपएसिए जुम्मपएसिए, तत्थ णं जे से ओयपएसिए से जहन्त्रेणं पणयालीसपएसिए पणयालीसपएसोगाढे उक्कोसेणं अनंत० तहेव । तत्थ णं जे से जुम्मपएसिए से जह० बारसपएसिए बारसपएसोगाढे उक्कोसेणं अनंत० तहेव ।
परिमंडले णं भंते ! संठाणे कतिपदेसिए ? पुच्छा, गोयमा ! परिमंडले णं संठाणे दुविहे पं०, तं० - घनपरिमंडलेय पयरपरिमंडले य, तत्थ णं जे से पयरपरिमंडले से जहनेणं वीसतिपदेसिए वीसइपएसोगाढे उक्कोसेणं अनंतपदे० तहेव ।
तत्थ णं जे से घनपरिमंडले से जहन्त्रेणं चत्तालीसतिपदेसिए चत्तालीसपएसोगाढे प०, उक्कोसेणं अनंतपएसिए असंखेज्जपएसोगाढे पन्नत्ता ।
वृ. 'वट्टेण’मित्यादि, अथ परिमण्डलं पूर्वमादावुक्तं इह तु कस्मात्त्यागेन वृत्तादिना क्रमेण तानि निरूप्यन्ते ?, उच्यते, वृत्तादीनि चत्वार्यपि प्रत्येकं समसङ्घयविषमसङ्खयप्रदेशान्यतस्तत्साधर्म्मात्तेषां पूर्वमुपन्यासः परिमण्डलस्य पुनरेतदभावात्पश्चाद् विचित्रत्वाद्वा सूत्रगतेरिति, 'घनवट्टे' त्ति सर्वतः समं धनवृत्तं मोदकवत् 'पयरवट्टे' त्ति बाहल्यतो हीनं तदेव प्रतरवृत्तं मण्डकवत्,
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