Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 07
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
View full book text
________________ 440 ) [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: सप्तमो विभागः सब्बतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति जाव णो विसमचकवालसंठिते 11 / . ता देवे णं दीवे केवतियं चकवालविक्खंभेणं केवतियं परिक्खेवण आहितेति वदेजा ?, असंखेन्जाइं जोयणसहस्साई चकवालविक्खंभेणं असंखेजाई जोयणसहस्साई परिक्खेवेणं आहितेति वदेजा 12 / ता देवे णं दीवे केवतिया चंदा पभासेंसु वा 3 पुच्छा तधेव, ना देवे णं दीवे असंखेजा चंदा पभासेंसु वा 3 जाव असंखेजायो तारागणकोडिकोडीयो सोभेसु वा 3,13 | एवं देवोदे समुद्दे णागे दीवे णागोदे समुद्दे जक्खे दीवे जक्खोदे समुद्दे भूते दीवे भूतोदे समुद्दे सयंभुरमणे दीवे सयंभुरमणे समुद्दे सव्वे देवदीवसरिसा 14 // सू० 101 // एकूणवीसतिमं पाहुडं समत्तं // // इति एकोनविंशतितमं प्राभृतम् // 19 // - // अथ चन्द्राद्यनुभावाख्यं विंशतितमं प्रामृतम् // ता कहं ते अणुभावे श्राहितेति वदेजा ?, तत्थ खलु इमायो दो पडिवत्तीयो पराणत्तायो, तत्थेगे एवमाहंसु ता चंदिमसूरिया णं णो जीवा अजीवा णो घणा झुसिरा णो बादरबोंदिधरा कलेवरा नस्थि णं तेसिं उट्ठाणेति वा कम्मेति वा बलेति वा विरिएति वा पुरिसकारपरकमेति वा, ते णो विज्जू लवंति णो असणि लवंति णो थणितं लवंति, ग्रह य णं बादरे वाउकाए संमुच्छति अहे य णं वादरे वाउकाए समुच्छित्ता विज्जु पि लवंति असणिपि लवंति थणितंपि लवंति एगे एवमाहंसु, ?, एगे पुण एवमाहंसु, ता चंदिमसूरियाणं जीवा णो अजीवा घणा णो असिरा बादरबुदिधरा नो कलेवरा अस्थि णं तेसिं उठाणेति वा कम्मेति वा बलेति वा विरिएति वा पुरिसकार परकमेति वा ते विज्जुपि लवंति 3, एगे एवमाहंसु 1 / वयं पुण एवं वदामो-ता चंदिमसूरिया णं देवा णं महिड्डिया महज्जुइया महब्बला महा. जसा महसक्खा (महासोक्खा) महाणुभागा वरवत्थधरा वरमल्लधरा वराभरणधारी अवोच्छित्तिणयट्टताए अन्ने चयंति अराणे उववज्जति 2 ॥सूत्रं 102 //

Page Navigation
1 ... 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532