Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 07
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 471
________________ 444 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : सप्तमी विमागः थाहितेति वदेजा ?, ता सूरादीया समयाति वा बावलियाति वा प्राणापाणूति वा थोवेति वा जाव उस्सप्पिणियोसप्पिणीति वा; एवं खलु सूरे श्रादिच्चे 2 श्राहितेति वदेजा 2 ॥सूत्रं 104 // ता चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिसरगणो कति अग्गमहिसीयो पराणत्तायो?, ता चंदस्स णं जोतिसिंदस्स चत्तारि अग्गमहिसीयो पराणत्ताश्रो, तंजहा-चंदप्पभा दोसिणाभा अच्चिमाली पभंकरा 1 / जहा हेट्ठा तं चेव जाव णो चेव णं मेहुणवत्तियं, एवं सूरस्सवि णेतव्वं 2 / ता चंदिमसूरिया जोतिसिंदा जोतिसरायाणो केरिसे कामभोगे पच्चणुभवमाणा विहरंति ?, ता से जहा णामते केई पुरिसे पढम-जोव्वणुट्ठाणाबलसमत्थे पढमजोव्वणुट्ठाण-बलसमत्थाए भारियाए सद्धिं अचिरवत्तवीवाहे अत्थत्थी अत्थगवेसणताए सोलसवासविप्पवसिते से णं ततो लट्ठ कतकज्जे अणहसमग्गे पुणरवि णियगघरं हव्वमागते राहाते कतबलिकम्मे कयकोउयमंगलपायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगलाई वत्थाई पवरपरिहिते अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे मणुगणं थालीपाकसुद्धं अट्ठारसवंजणाउलं भोयणं भुत्ते समाणे तंसि तारिसगंसि वासघरंसि अंतो सचित्तकम्मे बाहिरतो दूमितघट्टम? विचित्तउल्लोष-चिल्लियतले बहुसम-सुविभत्तभूमिभाए मणिरयण-पणासितंधयारे कालागुरु-पवरकुदुरुक-तुरुक-धूव-मघमघेत-गंधुद्धयाभिरामे सुगंधवरगंधिए गंधवट्टिभूते तंसि तारिसगंसि सयणिज्जसि दुहतो उराणते मज्झे णतगंभीरे उभयो सालिंगणवट्टिए उभयो विब्बोयणे (पराणत्तगंडविब्बोयणे) सुरम्मे गंग पुलिणवालुया-उद्दालसालिसए सुविरइयरयत्ताणे श्रोयवियः-खोमिय-खोमदुमूलपट्टपडिच्छायणे रत्तंसुयसंवुड़े सुरम्मे आईणग रूत-बूर-णवणीत--तूलफासे सुगंधवर-कुसुमचुराण-सयणोवयारकलिते ताए तारिसाए. भारियाए सद्धिं सिंगारागारचारवेसाए संगत--हसित-भणित-चिट्ठित-संलाव:-विलास-णिउणजुत्तोवयारकुसलाए अणुरत्ताविरत्ताए मणोणुकूलाए एगंतरतिपसत्ने अराणत्थः कच्छई मणं अकुवमाणे इट्टे सदफ़रिसरसरूवगंधे पंचविधे माणुस्सए.

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